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लघुकथा : कूप मंडूक - शेफालिका सिन्हा, राँची


 

लघुकथा 

कूप मंडूक

समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं रमेश बाबू । बहुत पढ़े- लिखे हैं और एक ऊंचे पद को सुशोभित करते हैं। लोगों के बीच मान्यता है कि वे खुले दिमाग के व्यक्ति हैं। समय के साथ चलने वाले हैं ,दकियानूसी तो बिल्कुल नहीं हैं। 

रमेश बाबू आजकल  बहुत परेशान चल रहे हैं। उनकी इकलौती बेटी ने साफ कह दिया है कि वह अपनी पंसद के लड़के से ही शादी करेगी। वह लड़का स्कूल से ही साथ पढ़ा हुआ है । आगे की पढ़ाई उन्होंने अलग-अलग की है, इसलिए अभी दोनों अलग प्रोफेशन में हैं।

लेकिन जब से लड़की ने अपने पसंद के लड़के के बारे में बताया है, रमेश बाबू कूप मंडूक हो गए हैं। कुएं के मेंढक की तरह उनकी दुनिया अपनी जाति- संस्कार से अलग नहीं होना चाहती । बहुत असमंजस में हैं। अब न चाहते हुए भी कोशिश में है कि कुएं से निकल जाएँ।


- शेफालिका सिन्हा, राँची 

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

1 Comments

  1. व्यक्तित्व का दोहरापन बहुत अच्छे से रेखांकित किया है. बधाई.

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