काव्य :
ज्ञान -सलिल -अवगाहन
मेरा विश्वास अभी उठा नहीं है,
खूँ का कतरा अभी रूठा नहीं है,
सत्य की जय होगी जरूर एक दिन
सच ही जीतता है, झूठा नहीं है I
एक बाजी मैंने जो लगाई है,
उसमें न मेरी सबकी भलाई है,
बरसों से जो इक ख्वाहिश दिल में थी
मौका पाकर वह बाहर आई है I
चाह है, ज्ञान-सलिल - अवगाहन करे,
पारस का स्पर्श हर जड़ पाहन करे,
रहे ना कोई माँ के वर से दूर
चरणों पर सारे चाह - अर्पण करे I
गणेश यह भार नया है कंधे पर,
आस है असर नजर आये अंधे पर,
चक्षु उन्मीलित होवे सबके कभी
शुचिता का प्रभाव हो हर धंधे पर I
- डॉ.गणेश पोद्दार,रांची
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