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कहानी : जन्मकुंडली - सुमन चंदा, लखनऊ


 

कहानी : जन्मकुंडली

जीवन में बहुत आकांक्षाये थी। जैसे-जैसे शुभा बड़ी हो रही थी उसे पढ़ने और सीखने की ललक बढ़ती जा रही थी। घर पर हर वक्त पापा को काम करते या पढ़ते पाया। शुभा के पिता यूनिवर्सिटी में डीन थे और ज्यादातर काम में व्यस्त रहते थे। शुभा ने भूगोल शास्त्र में पी.एच.डी. किया था और अपने ही शहर के नामी कॉलेज में प्राचार्या थी। शुभा को अपने विषय में अच्छा होल्ड था और कॉलेज के स्टूडेंटस उसके पढ़ाने के तरीके को पसंद करते थे। कॉलेज में पढ़ाने के क्रम में उसकी जान पहचान किसी अन्य डिपार्टमेन्ट के प्रोफेसर संदीप से हो गयी। दोनो फ्री होने पर कैंटीन में या लाइब्रेरी में मिलते। कभी कभी शुभा और संदीप एक साथ घर लौटते। संदीप शुभा को पसंद करने लगा था और कोशिश कर रहा था कि समय आने पर अपनी बात को कह सके। शुभा इन सब बातों से अन्जान थी और संदीप को एक मित्र की तरह पसंद करती थी।

इधर घर पर शुभा के माता-पिता उसकी शादी के लिए लड़का तलाश कर रहे थे। शुभा की मॉं बहुत ही धार्मिक ख्याल की थी और शादी-ब्याह में जाति और जन्मकुंडली के मिलान को बहुत महत्व देती थी। अच्छे-अच्छे लड़को को केवल जन्मकुडंली में गुण नही मिलने के कारण बात आगे नही बढ़ाती थी। शुभा इन सब बातो में जरा भी दिलचस्पी नही लेती थी उसके हिसाब से वो अपनी मनपंसद के लड़के को अपना पार्टनर बनाना चाहती थी। कई बार बातों के क्रम में उसने अपने माता-पिता को अपने विचार बताये लेकिन उसकी बातों को कोई अहमियत नही दी गयी। शुभा की मॉं बहुत जोर-शोर से लड़का ढूॅंढ रही थी और निर्णय ले चुकी थी कि जहॉं लड़के का गुण शुभा के गुण से पूरी तरह मैच होगा वहीं शुभा की शादी होगी।

शुभा अपने घर का ये रवैया देख बहुत परेशान हो गई थी और उसने एक दिन संदीप को भी इस बारे में बताया। संदीप इन बातों को सुन बहुत परेशान हो उठा वो तो शुभा को अपना लाइफ पार्टनर बनाने का सोच रहा था और शुभा से इस विषय में बात करना चाहता था। संदीप चुप सा हो गया और निर्णय नही ले पा रहा था कि वो क्या करे?

माता-पिता के बहुत दबाव देने पर शुभा की शादी ऐसे लड़के से तय कर दी जाती है, जहॉं उसके गुण लड़के के गुण से मैच करते थे। लड़के और लड़की के मानसिक स्तर में मैच है या नही, से नही देखा गया। लड़का पढ़ा-लिखा था पर उसका अपना व्यवसाय था। शुभा की मॉं शुभा को बोली जा रही थी, तुम्हारे और नमन के इतने गुण आपस में मैच कर रहे हैं, तुम भाग्यशाली हो जो ऐसे लड़के से तुम्हारी शादी हो रही है।

उधर अचानक कॉलेज में फिर से उसकी मुलाकात संदीप से हो जाती है। संदीप को पता चल चुका था कि शुभा की शादी कहीं और तय हो रही है फिर भी उसने उसे समझाना चाहा। उसने शुभा को कई दलीले दी, ये भी बताया कि हमलोग अच्छे पार्टनर बन सकते हैं, हमारी फिल्ड भी एक है और वो शुभा को पसंद करता है। शुभा चाहते हुए भी हॉं नही कर पाई और वो आगे नही मिलने की बात कर वहॉं से चली गई। उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वो अपने पेरेंटस को अपनी पसंद बताये।

शुभा की शादी नमन से हो गई। सबकुछ भूलते हुए वो एक नये जीवन में प्रवेश कर चुकी थी। शुभा पत्नी होने के साथ-साथ एक प्रोफेशनल लड़की भी थी और वो अपने जॉब और फैमली लाइफ में तालमेल बैठा कर आगे बढ़ना चाहती थी। पर ससुराल में सबकुछ उसकी सोंच के विपरीत निकला। शुभा को पूरे घर का काम खाना बनाना, सफाई करना और भी कई काम की जिम्मेदारी दे दी गई। वो सारा दिन घर के काम और कॉलेज के काम में भागती रहती। घर पर किचन में और अन्य काम में कोई उसकी सहायता नही करता। शुभा का पति अलग तरीके का इंसान था, उसे घर से एकदम मतलब नही था। सारे काम उसे हाथ में चाहिए था। वो शुभा की कोई मदद तो दूर हमेशा कहता घर के लोग जैसा चाहते है वो तो करना ही पड़ेगा। रात को देर से आना दोस्तों के साथ पार्टी करना ये सब नमन के लिए आम बात थी। शुभा ना ढंग से तैयार हो पाती, ना अपने लैक्चर तैयार कर पाती और न सही डाईट ले पाती। काम का ज्यादा प्रेशर और मानसिक तनाव से वो घिरती जा रही थी। एक दिन कॉलेज से लौटते हुए उसे ऑटो में तबियत खराब सी होने लगी और उतरते हुए वो चक्कर खा कर गिर पड़ी। बगल से एक रिक्शेवाला निकल कर रहा था जिससे उसे काफी चोट भी आ गयी। लोग भीड़ जमाकर उसे देखने लगे। इत्फाक से उधर से संदीप गुजर रहा था। उसे शुभा को पहचाना और सबको हटा कर उसे हास्पिटल ले गया जहॉं उसने उसकी इलाज शुरू करवाई और उसकी फैमिली को फोन से खबर दी।

शुभा की मॉं ने जब बेड पर लेटी अपनी बेटी को देखा तो शायद यकीन ही नही हुआ कि वो शुभा है। उसका चेहरा जैसे पीला पड़ गया था। शुभा के माता-पिता दोनो उसे देख परेशान हो उठे और नमन से बात करना चाहा। नमन ने उनको नमस्ते किया और किनारे हो लिया। नमन के मॉं-पापा बोले जा रहे थे इतनी केयरलेस है कि ऑटो से उतरना भी ना आया। बहुत ही चंचल है भाई शुभा। अब पता नहीं कब ठीक होगी कि घर का काम कर पायेगी। शुभा की मॉं ये सब सुन स्तब्ध रह गयी। शुभा के पिता ने हास्पिटल से बेटी को अपने घर ले जाने का निर्णय ले लिया। ससुराल वाले आना-कानी करते रहे पर उन्होने एक ना सुनी। मॉं-पिता की देखभाल से कुछ दिनो बाद शुभा ठीक होती गई।

आज सुबह से शुभा की मॉं शुभा को आवाज लगा रही है। शुभा ने नाश्ता नही लिया था। कमरे में घुसते ही उन्होने शुभा को अपना सामान पैक करते देखा। शुभा ने बताया वो 10 बजे की ट्रेन से अन्य शहर जा रही है, जहॉं के कॉलेज में उसकी नौकरी लग गयी है कमरे में बैठे-बैठे ही शुभा ने ऑनलाइन इंटरव्यू दे दिया था। शुभा के मम्मी-पापा के कुछ कहने और सुनने के पहले ही शुभा ने दोनो के पैर छुए और अपने बैग को अपने हाथ में लिये हुए शुभा ने कहा- मॉं अब मत रोकना, आगे के जीवन का फैसला मैं खुद लेना चाहती हॅूं। शुभा की मॉं हैरान थी, परेशान थी, जन्मकुंडली में तो इतना अच्छा संयोग था, इतने गुण मिले थे, मेरी बेटी के जीवन में ये सब क्या हो गया। उनके पास इसका कोई जवाब नही था। शुभा के माता-पिता बस टकटकी लगा अपनी बेटी को घर से दूर जाते देखते रह गए।

- सुमन चंदा, लखनऊ

                                                                                                                                                                                                                                                                   


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

1 Comments

  1. भारतीय घरों की यह आम मानसिकता है. लड़के-लड़कियों के विचारों का मिलान आम तौर पर किया ही नहीं जाता. समय बदलने के साथ अभी भी अधिसंख्य लोगों की मानसिकता नहीं बदली. पुरातन और आप्रासंगिक हो रही प्रथा को जबरन ढो रहे लोगों के हश्र को रेखांकित करती बेहतरीन रचना. रचनाकार को साधुवाद.

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