काव्य : पानी
पानी तेरी अजब कहानी, तेरी लीला किसी ने नहीं जानी,
धरती से उड़ अंबर में जाकर, फिर बरसे धरती पर पानी।
जिस में मिले वैसे रंग जाये, दूध में मिले दूध बन जाये,
आंख से निकले आंसु कहलाये,सीप पीये मोती बन जाये।
ज्यादा बरसे हाहाकार मचाये,नदी बांधो में उबाल सा आये,
जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाये, फसलें सारी नष्ट हो जाये।
कई जनो के घर बार डुबाये, कई जनो की जाने चलीं जाये,
चारो और होकर भी पानी, पीने के पानी के लाले पड जाये।
कम बरसे तो अकाल पड जाए, खेती नहीं कोई कर पाये,
उद्योग व्यापार मंद हो जाए, पशु-पक्षी कईयों मर जाये।
इन्द्र देव को कैसे मनाएं, जगह जगह होम हवन कराये,
तु बरसे तो सब खुशियां मनाये,मन भावन व्यंजन बनाये।
तूझ से ही है ये हरियाली, तूझ से ही जीवन सृष्टि में सारा,
जलचर थलचर सबके जीवन में सिर्फ तेरा ही है सहारा।
मत बहाओ कभी फ़िज़ूल मे पानी,मत करो अपनी बर्बादी,
एक एक बूंद बचाओ मुथा,ये ही बचायेगा सबकी जिंदगानी
- कवि छगनलाल मुथा-सान्डेराव, मुम्बई