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काव्य : अप्पो दीपो भव - ऊषा सोनी , भोपाल

 


काव्य : 

अप्पो  दीपो  भव


सूर्य  के अवसान के साथ 

तुम्हारा  आगमन, हे  यामिनी, 

बहुत  खूबसूरत  है। 

तुम्हारे आँचल में अनगिनत  तारों 

से  भरी  आकाश गंगायें समाहित है। 

विशाल है  उनका क्षेत्र, और तुम्हारा  साम्राज्य  अंतहीन। 

किंतु  हे  यामिनी  न  भूलो सदियों से वहाँ  

सप्त ऋषियों  का  समाधिस्थ  होना,  भी  एक  खास प्रयोजन है। 

उनका  तपबल  ओज  प्रकाश   तुम्हारे  इस  एकाधिकार  को विशालता  प्रदान  करता है।

यूँ ही  तुम  यामिनी  नहीं  कहलातीं। 

तुम्हें  इन  सबसे  संबल  मिला है। 

 फिर भी  तुम  आकाश  तक  ही सीमित  हो, 

बदले  में  हम  धरा  वासी  अंधेरे  का  विकल्प  ढूँढते  हैं। 

मैं  धरावासी  साधारण  नारी ,

 जिसने  जन्मते  ही भेदभाव  की अवहेलना  झेली। 

पराया धन, किस  काम  का, जैसे 

उलाहने  भी  झेले। 

समाज  के  कठोर  दंडों  को सहते  भोगते  आज  भी  संघर्ष 

से  दो चार  होती  हूँ। 

फिर भी  बड़े  साहस  और  उत्साह  से  ऐसे  अन्नान्य  झिलमिल  दीपों  कानिर्माण  कर 

उन्हें  स्वालंबन  की  डगर  पर भेज  रही  हूँ, जहाँ  वे  स्वयं  का 

आकाश  रच  सकें,  वहाँ  उनका 

प्रकाश  हो, सुंदर आलोकित  साम्राज्य हो। 

वे  किसी के  प्रकाश  और  संबल पर 

आश्रित  न हो। 

तुम्हें  यह  दीप  दिखाने  का  मेरा 

यही  एक  प्रयोजन है। 

हे यामिनी।


- ऊषा सोनी , भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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