प्रयोगधर्मी छायाकार जगदीश कौशल ने जीवन के 92 वें वर्ष में किया प्रवेश ; अभिनंदन समारोह मना
भोपाल । यह कोई साधारण बात नहीं है कि एक सरकारी फोटोग्राफर जितनी नौकरी कर चुका हो उससे ज़्यादा पेंशन खा चुका हो। फिर भी हँसता मुस्कुराता साहित्य की महफ़िलों का सक्रिय भागीदार हो।
यह करिश्मा करने वाले प्रयोग धर्मी छायाकार जगदीश कौशल के इष्ट मित्रों ने अपना 92 वाँ जन्म दिन दुष्यंत संग्रहालय में धूमधाम से मनाया। कार्यक्रम की अध्यक्षता घनश्याम सक्सेना ने की और मुख्य अतिथि राजेश बादल तथा डॉ विजय बहादुर सिंह, सारस्वत अतिथि लाजपत आहूजा रहे।
सबसे पहले सुरेश पटवा ने जगदीश कौशल के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशद रूप से प्रकाश डाला कि इंदौर में 19 सितंबर 1933 को जन्मे की जीवन यात्रा मालवा की काली दोमट मिट्टी से हुई। आठ वर्ष के होते ही उनके पिताजी का स्थानातंरण नौगांव बुंदेलखंड होने से इनकी प्राथमिक शिक्षा नौगांव में हुई। वहाँ इनको इनके पहले गुरु भगवान दयाल श्रीवास्तव मिले। जिन्होंने इन्हें कैमरा की खूबियों और उसके जादुई चमत्कार से परिचित कराया।
इनकी उच्च स्तरीय शिक्षा रीवा में हुई जहाँ इनको फोटोग्राफी के दूसरे गुरु गंगा सिंह विरोरिया मिले। जिन्होंने फोटोग्राफी की तकनीक से इनको परिचय कराया। मध्य प्रदेश सरकार के जन संपर्क विभाग नौकरी में इन्हें ईश्वर सिंह परिहार मिले जिन्होंने इनकी प्रतिभा को पहचान कर वाचनालय में रहते हुए शासकीय फोटोग्राफी के मैदान में उतारा। इन्होंने फोटोग्राफी के शौक की ही नौकरी में रहते परवान चढ़ाया। इनके हरेक फ्रेम में कविता छुपी है। उसे समझने की जरूरत है। उन्होंने कौशल जी के जिंदगी जीने के तरीके पर ग़ालिब का शेर सुनाया-
गो हाथ में जुंबिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर ओ मीना मेरे आगे।
जगदीश कौशल ने जीवन में मित्रों की महत्ता प्रतिपादित की और मित्र मंडली को धन्यवाद दिया।
उन्होंने उपस्थित जन समूह का आभार व्यक्त किया।
उन्होंने अपनी कला को प्रकाशित करने का विचार भी व्यक्त किया। जो आगामी जन्म दिवस तक आपके सामने होगा। उन्होंने स्व राजुरकर राज का स्मरण किया।
घनश्याम सक्सेना ने इनकी फोटो गैलरी को “अनअभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति” निरूपित करते हुए छायाचित्रों को अद्भुत नमूने बताया। छायाचित्र में छायाकार का मन नहीं प्रकट होता लेकिन उसकी कला से चित्रित व्यक्ति के मन में छुपा भाव प्रकट हो जाता है। कौशल जी की फोटोग्राफी की यही कुशलता है।
प्रसिद्ध लेखक समीक्षक आलोचक डॉ विजय बहादुर सिंह ने कहा कि काल बहुत लंबा है जीवन छोटा, अपनी उम्र से समय को छोटा करने की कोशिश में कौशल जी में शानदार जीवन जिया है। इनके चित्र से कई कविताएं और कहानियाँ लिखी जा सकती हैं।
उन्होंने इस संबंध में निराला जी की “बनबेला” कविता सुनाई।
राजेश बादल ने बताया कि कौशल जी के ठहाके प्रसिद्ध हैं। हमको नई दुनिया की पत्रकारिता करते हुए हमको कौशल जी के चित्र मिला करते थे। हम उनको फ़ोन करके उनसे ठहाका सुना करते थे। ठहाका उनकी लंबी उम्र का राज है। उन्होंने नज़ीर अकबरावादी की नज़्म “जवानी” और “बुढ़ापा” सुनाकर उम्र के पड़ाव का जिक्र किया।
उनके सहकर्मी रहे लाजपत आहूजा ने संस्मरण सुनाए कि कौशल ने जन संपर्क विभाग में रहते हुए फोटोग्राफी के शौक को आगे बढ़ाया। उनके खुश रहने की आदत ने उन्हें जिंदादिल रखा है। इनके अतिरिक्त मधुलिका सक्सेना, डॉ लता अग्रवाल,के सी सक्सेना सुधीर सक्सेना, महेश सक्सेना, अशोक निर्मल, क्षमा पाण्डे ने कौशल जी संस्मरण सुनाए। स्वागत भाषण संग्रहालय की निदेशक करुणा राजुरकर ने दिया। सफल संचालन घनश्याम मैथिल में किया। आभार संग्रहालय के अध्यक्ष राम राव वामनकर ने व्यक्त किया।
करुणा राजुरकर
निदेशक
दुष्यंत स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय
भोपाल।
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