काव्य :
चंद अश़आर
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क्यों करें तारीफ़ ये मुझ पे क़हर की बात है|
चाहते करना मुझे वो दर-ब-दर की बात है|
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ऐब उनका है नहीं और ये ख़ता उनकी नहीं,
जिसके जैसे ख़्याल ये तो परवरिश की बात है|
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लोग ग़र पीने लगे और हो रहे मदहोश तो,
ये समझिये ज़िन्दगी में कशमकश की बात है|
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लोग गिरते खाइयों में वाह वा कोई करे,
पी के गिरने में कहाँ कोई हुनर की बात है|
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आदमी से है नहीं लेकिन मुहब्बत पैग से,
पैग दो लगते हो ज़ाहिर जो ज़िगर की बात है|
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वो हैं आमादा कुचलने इस अवामी जंग को,
उनके जम्हूरी इदारों के सिफर की बात है|
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ये जो उनका कारवां पुरजोर जो है कूच में,
इसमें अपनी कोशिशों की उम्र भर की बात है|
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अब परिन्दों को सज़ा उड़ने की मिलने जा रही,
ख़ैरमक़दम की नहीं ये तो क़हर की बात है|
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फन हमारा ग़र कुचलने का इरादा कर लिया तो,
आम है मेरे लिए शाम-ओ-सहर की बात है|
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- प्रदीप ध्रुव भोपाली,भोपाल म.प्र.