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लघुकथा : पहली कस्टमर - प्रो अंजना गर्ग , एम डी यूनिवर्सिटी रोहतक


  लघुकथा 

 पहली  कस्टमर

' बेटा, टॉवल मत बदलना '। शिवा ने लिखते लिखते अपना पेन रोक कर कहा।

' मैडम मैं अभी लॉन्ड्री से आते ही दूसरे टावल रख जाऊंगा'। संदीप ने विनम्रता से कहा।

 "पर बेटा मैंने कहा टॉवल बदलने की जरूरत नहीं है। मैंने  धूप में डाल दिए है , सूख जाएंगे'। शिवा ने प्यार से बोला।

 ' क्या' ? लड़के ने बड़ी हैरानी से कहा। ' हां बेटा, कल देख लूंगी अगर गंदे हुए तो बदलवा लूंगी।आप इतनी हैरानी से क्यों देख रहे हो'। 

' मैडम कई लोग तो दिन में  दो-दो बार टॉवल मंगवाते हैं और आप पहली कस्टमर है जो अगले दिन भी बदलने को मना कर रही है'। 

 बेटा जब गंदे ही नहीं तो बदलने की क्या जरूरत है । फिर क्यों पानी, बिजली, साबुन और एनर्जी की वेस्टेज करें'। शिवा ने आराम से समझाया और फिर से अपना लेख लिखने लगी।

लड़के की हैरानी  की कोई सीमा नहीं थी क्योंकि उसकी दो साल की होटल की नौकरी में यह  पहली ऐसी कस्टमर थी।

      - प्रो अंजना गर्ग ,

एम डी यूनिवर्सिटी रोहतक

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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