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काव्य : भगवत गीता- आठवाँ अध्याय -रानी पांडेय , रायगढ़ छत्तीसगढ


 काव्य : 

भगवत गीता- आठवाँ अध्याय 


ब्रम्हा-जीवात्मा, 

परमब्रह्म -भगवान

आध्यात्म-ब्रम्हा प्रकृति ,

कर्म-ब्रम्हाकार्य ,अधिभूत -

भौतिक प्रकृति ,अधिदैव -

ईश्वर का विराट रूप ,

अधियज्ञ- ब्रम्हा में परमब्राह्म,

जीवन दुःख की नगरी ,

ईश्वर का रचा कारावास 

सजा और शुद्धिकरण हेतु 

आते यहाँ करने को वास, 

चार क्लेश भौतिक संसार के ,

जन्म,जरा, व्याधि, मृत्यु, 

अतिदैविक ,अतिभौतिक,

आत्मिक क्लेश से ग्रसित,

मानुस, मन,बुद्धि से भक्ति 

की शक्ति से प्रभु तक जाते ,

अपनी सारी इच्छाएँ भक्तियोग 

से पूरी कर परिपूर्ण कर पाते । 

पकवान-प्रसाद,भ्रमण-तीर्थस्थल 

गायन-नृत्य,कृष्ण प्रेम 

मे वशीभूत झूमकर गाकर।

भक्त आध्यात्मिक जीवन 

से जुड़े प्रश्नों का समाधान करे, 

जैसे कृष्ण अर्जुन के प्रश्नों का, 

प्रश्न बुद्धि का विस्तार करते,

संशय का निर्वाण करते,

आध्यात्मिक व्यक्ति ,

मृत्यु से भयभीत नहीं होता, 

मृत्यु एक परीक्षा है, एक आशा है,

अंतिम क्षणों के भाव ही आगे की 

यात्रा निर्धारित करते,

मनुष्य जिसका ध्यान धरता ,

उसी योनि में पुनर्जन्म लेता, 

ईश्वर का ध्यान प्रभुधाम ले जाती है, 

गीता जीने का ही नहीं,मरने 

का भी तरीका सिखलाती है। 

 - रानी पांडेय , रायगढ़ छत्तीसगढ ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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