काव्य :
आजकल
एक बगावत हो गई है आजकल ।
तेरी आदत हो गई है आजकल ।
बेवजह भी अश्क आते आंख में।
कैसी फितरत हो गई है आजकल।
क्या तुझे है प्यार करना भूल सा।
क्यों जलालत हो गई है आजकल।
जो गलत उसको गलत कहना सुनो।
एक बगावत हो गई है आजकल।
तेरी खातिर दुनिया से लड़ता रहा।
तू मेरी लत हो गई है आजकल।
जो सुकूं बाहों में तेरी है मिला।
जैसे जन्नत हो गई है आजकल।
- आर एस माथुर,इंदौर
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