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काव्य : हाय छल करके यहाँ से चल दिया कोई -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट,बटेली


 काव्य : 

हाय छल करके यहाँ से चल दिया कोई


आस्था से खेलकर सिंदूर उसकी माँग में भर

हाय छल करके यहाँ से चल दिया कोई। 

*

पीठ में विश्वास की भोंका गया है आज खंजर 

दिल बहुत सहमा हुआ है देखकर बेरहम मंजर

खा गया कोई यहाँ उम्मीद के भी अस्थि पंजर

प्रेम की फसलें उगेंगी क्यों भला जब खेत बंजर

*

स्वार्थ में डूबे बहुत से लोग पैदा कर रहे डर 

इसलिए संवेदना भी खूब है रोई।

*

मौत की परिकल्पना अवसाद की घुट्टी पिलाए

और फिर संत्रास का वातावरण सबको हिलाए 

आज बरगद को चुनौती दे रहा जो खिलखिलाए

खा उसी तूफान से अब चोट कोई तिलमिलाए

*

क्यों बहाना आजकल सद्भावना के नाम पर कर

मान- मर्यादा किसी ने आज है खोई। 

*

मन मलिन जिसका रहा अपराध क्यों अपना कबूले

ऐंठ में जो भर गया नैतिक सभी संबंध भूले

जो हुआ पीड़ित यहाँ उसको मदद के हाथ लूले

और ऊहापोह का झूला यहाँ वह खूब झूले

*

न्याय की आवाज भी तब काम कब आए यहाँ पर 

जीतकर दुर्भावना जब चैन से सोई। 

आस्था से खेलकर सिंदूर उसकी माँग में भर

हाय छल करके यहाँ से चल दिया कोई। 

*

- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

 'कुमुद- निवास', बरेली (उत्तर प्रदेश) 

मोबा. -9837944187

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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