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काव्य : नवगीत 'चाटुकारी रस' - भीमराव 'जीवन' बैतूल


 काव्य : 

नवगीत 

'चाटुकारी रस'


कच्चे कान पके सुन सुन के, अफवाहों के नामी ढोल।

चारण कलमों ने लिख गाये, गीत चाटुकारी रस घोल।।


मिथकों को  शृंगारित करके, धूर्त कहे ये पुष्ट प्रमाण।

पाखंडों की भीड़ खड़ी कर,घोट दिए कबीरा के प्राण।।  

समरसता जो हुई विषैली, इसमें इन भाटों का रोल।। 


भ्रमित खड़ा है हिरणा मन का, चौकन्ने हैं पग-पग व्याध।

गले  डाल  पंथों  के  फंदे, करते नित आखेट अबाध।। 

हाथ  सेंकते  आग  लगा कर, इनके  हैं  बातों में झोल।। 


मानवता  के  हत्यारों  ने, देखा  केवल  अपना स्वाद।

खड़ा किया है हर कोने पर,आडंबर का अमिट फसाद।। 

चढ़ बैठा सिर अधुनातन के, नाग पुरातन करे किलोल।।


- भीमराव 'जीवन' बैतूल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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