रावण खड़ा बाजार में
सच ही तो है रावण आज बाजार में उपलब्ध है। उसके कद की ऊंचाई के लिए आज पूरा बाजार उसके पीछे भाग रहा है। हर आंगन में अनैतिकता का रावण अट्टहास कर रहा है। गलियों , चौक चौराहों पर दुर्योधन और दु:शासन तांडव कर रहे हैं । जटायु जैसा नैतिक साहस अब किसी में है नहीं । भीष्म और विदुर कल भी राजसत्ता से बंधकर खामोश थे और आज भी उनकी प्रकृति - प्रवृत्ति नहीं बदली। लंका में सीता ने अकेले ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी और हस्तिनापुर में सबके होते हुए भी द्रौपदी ने अपने लिए अकेले ही संघर्ष किया।
सीता के प्रश्न आज भी अनुत्तरित है और द्रोपदी सैरंध्री बनकर आज भी कदम दर कदम संघर्ष ही कर रही है क्योंकि रावण आज बाजार में आकर खड़ा हो गया है। नैतिकता, मर्यादा, अनुशासन , संयम , रीति - नीति सबका हरण हो गया है। भ्रष्टाचार, जातिवाद , सम्प्रदायवाद , आतंकवाद के रावण की गर्जना चारों तरफ नर्तन कर रही है । सोशल मीडिया का रावण बच्चों ,बूढ़ो और युवाओं को अपने शिकंजे में जकड़ चुका है । मल्टीमीडिया का नीला प्रकाश जहर बनकर आंखों की रोशनी को निगल रहा है।
आज वो जटायु नहीं जो पूरी ताकत के साथ गलत बात का विरोध करते हुए रावण जैसे शक्तिशाली का विरोध कर सके ।
धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा॥
चोचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही ।।
जटायु ने रावण के बाल पकड़कर उसे रथ के नीचे उतार लिया, रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा। गीध सीताजी को एक ओर बैठाकर फिर लौटा और चोंचों से मार-मारकर रावण के शरीर को विदीर्ण कर डाला। इससे उसे एक घड़ी के लिए मूर्च्छा हो गई । एक बुजुर्ग के विरोध मात्र से रावण इतना भयभीत हो गया कि वह सीता को जल्दी जल्दी रथ पर सवार होकर उतावले पन के साथ जाने लगा -
सीतहि जान चढ़ाइ बहोरी। चला उताइल त्रास न थोरी॥
कबीर तो बाजार में खड़े होकर सबकी खैर मांगते हैं पर आज जटायु तो कोई है ही नहीं जो आगे आकर गलत बात का विरोध कर सके। मन, वचन और कर्म से कपट छोड़कर जो परहित के लिए काम कर सके ऐसे लोग अब कम हैं। प्रति वर्ष दशहरा आता है एक मोहल्ले में चार - पांच जगह देवी जी का दरबार सजाते हैं, हर दस कदम पर भंडारों का आयोजन होता है और दशहरे के दिन तमाम तामसिक प्रवृतियों का प्रतीकात्मक रूप रावण जला दिया जाता है।
सही अर्थों में रावण की प्रवृत्तियों के बढ़ते बाजार को समाप्त करने की जरूरत है। हमें एक कदम आगे आकर खड़ा होना ही होगा। गीता, रामायण के इस संदर्भ की अवधारणा को समझना ही होगा कि समाज के लिए लड़ो , लड़ नही सकते तो लिखो , लिख नही सकते तो बोलो , बोल नही सकते तो साथ दो ,साथ भी नहीं दे सकते तो जो लिख, बोल और लड़ रहे है, उनका सहयोग करो और ये भी न कर सको तो उनका मनोबल न गिराओ। क्योकि वो आपके हिस्से की लड़ाई लड़ रहे है। जिस बाजार में रावण खड़ा है उस बाजार को समाप्त करने के बजाय रावण को ही बाजार से हटा दो।
- डॉ हंसा व्यास
प्राध्यापक, इतिहास
पी एम कालेज आफ एक्सीलेंस
शा. नर्मदा महाविद्यालय नर्मदापुरम (म.प्र)