काव्य :
साड़ी रंगी रंगरेज
धानी चुनर ओढ़के
धरती सजी गोरिया,
साड़ी रंगी रंगरेज
तूने केसरिया ।
संदूक से सारे रंग
लेके छिड़क दिये,
उड़े जब रंग-गुलाल
सारे फूल रंग गये ।
सूरज, तेरा हुनर
ऐसी जादूगरी,
सदियों से नाचे धरा
हो मगन बावरी ।
-डाॅ. सुधा कुमारी, नई दिल्ली
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