काव्य :
हिंदी भाषा जैसे कोई राजदुलारी है
।विधा।।मुक्तक।।
1
हिंदी लगती बड़ी ही प्यारी है।
हिंदी सारे जग से न्यारी है।।
विश्व में हिंदी का परचम लहराए।
हिंदी भाषा जैसे राजदुलारी है।।
2
चहुँ ओर ही हिंदी का गुणगान है।
यह भाषा तो बहुत ही महान है।।
ज्ञान विज्ञान वेद शास्त्र संस्कृति।
यह भाषा मानो रत्नों की खान है।।
3
बहुत मीठी सी यह एक बोली है।
कभी कठोर सी भी और भोली है।।
बात उतर जाती है सीधी दिल में।
मानो कि कोई मिश्री की गोली है।।
4
भारत ही नहीं विश्व की भाषा है।
आपसी प्रेम को दी नई आशा है।।
हिंदी मात्र भाषा नहीं है मातृ भाषा।
विविधता में एकता की परिभाषा है।।
5
जोड़कर रखा भारत को एक सूत्र में।
बना कर रखा है इसे शुभ मुहूर्त में।।
हिंदी में ही भारत पहचान निहित।
भारत का उत्थान निहित हिंदी गोत्र में।।
6
कला संस्कृति की जननी को प्रणाम है।
हर प्रदेश की एकता में छिपा नाम है।।
राजभाषा नहीं राष्ट्रभाषा स्थान मिले।
इसी में अंतर्निहित हिंदी का सम्मान है।।
- एस के कपूर "श्री हंस", बरेली