काव्य :
तुम न होती
p
तुम जो मुझे जीने हेतु श्वांसे देती हो,
इर्द गिर्द हो मेरे ये आभास देती हो,
तुम न होती तो कब का मर चुका होता,
तुम अपनत्व की वर्षा नही करती तो,
ये शरीर और सूखा होता,
जब तुम प्रेम में बहना बंद करती हो,
तो ये मन मेरा रूखा होता,
क्रोध में आने पर बवंडर ले आती हो,
समेट लेती हो दोषी,निर्दोष सब को,
सबको खूब घबराती हो,
शांत शीतल प्रेममयी की ,
तुम्हारी अदाएं खूब भाति है,
तुम्हारी याद पल पल सताती है,
मैं तो मैं, सभी तुम्हारे प्रेमी है,
तुम जिसे प्यार कर लो वह होता शतायु,
शक न करो मुझ पर,
यही मुझे श्वासें देती,यही मुझे आसे देती है
इसके प्रेम बिना हम होते अल्पायु,
यही तो मेरी सब कुछ है,
"प्राण प्रिये शीतल वायु".
-सुनील उपमन्यु, खण्डवा
Tags:
काव्य