काव्य :
'रिश्तों की अनुभूति'
रिश्तों की अनुभूति जगत में,सिर्फ शुचित मन करता है।
रिश्तों में यह सदा प्रेम से, रंग खुशी के भरता है।
रिश्ते सारे जल जैसे हैं, कितना भी हों गर्माते।
किन्तु कभी जब आग लगे तो, ये फौरन दहन बुझाते।
रिश्तों के इस जल के रहते, हर वैश्वानर डरता है।
रिश्तों की अनुभूति जगत में, सिर्फ शुचित मन करता है-----1
जन वे किस्मत वाले होते, हैं ढेरों रिश्ते जिनके।
देते हरदम नीड़ छांव सुख, जुड़कर के हैं ये तिनके। किसी राह पर किसी मोड़ पर, जब भी हैं हम घबराते।
तुरत वहाँ पर मीत खास ये, आकर हमको सहलाते।
इनके आने पर दुख मन में, नूतन हर्ष उछलता है।
रिश्तों की अनुभूति जगत में, सिर्फ शुचित मन करता है-------2
होते हैं वरदान ईश के, ये नेह के सूत्र सारे।
दिखलाते जो पग पग हमको, खुशियों के कलित नजारे।
बिन इनके लगता जग सूना, रंगहीन मरुथल ऐसा।
इनके रहते जीवन हँसता, घाटी के फूलों जैसा।
बिहँस गले में बाहें डाले, ये प्रेमादल मिलता है।
रिश्तों की अनुभूति जगत में,सिर्फ शुचित मन करता है-3
-रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहांपुर उप्र