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उन्मुक्त उड़ान मंच पर साप्ताहिक आयोजन हुआ


 उन्मुक्त उड़ान मंच पर साप्ताहिक आयोजन हुआ

आजमगढ़ । उन्मुक्त उड़ान मंच आपका अपना साहित्यिक मंच के तत्वावधान में नयी शुरुआत हुयी और मंच की संस्थापिका अध्यक्षा दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के मार्गदर्शन में इस सप्ताह सभी  रचनाकारों को 2024 वर्ष के अंतिम सप्ताह में संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ के मंच संचालन में विषय ‘विभिन्न मंचों पर अनवरत सहभागिता के साथ त्रुटि रहित लेखन का महत्व’ पर आलेख विधा में अपने भाव लिखने का प्रयास था| आज के डिजिटल और सामाजिक युग में, लेखन न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है बल्कि यह हमारी छवि और विश्वास को बनाए रखने का आधार भी है। विभिन्न मंचों पर अनवरत सहभागिता के साथ त्रुटि रहित लेखन का महत्व और बढ़ जाता है। आज के समय में, जहां हर कोई अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र है, त्रुटिहीन लेखन लेखक को भीड़ से अलग करता है और बात को प्रभावशाली बनाता है। 

18 रचनाकारों की प्रतिभागिता और विचारों से विषय की सार्थकता को नया आयाम मिला| अनु तोमर ‘अग्रजा’के अनुसार दी गई प्रतिक्रियाओं द्वारा त्रुटियों का संशोधन आवश्यक है । कम लिखें एक दो मंचो पर या विषयों पर ध्यान केन्द्रित कर लिखें । रंजना बिनानी ‘काव्या’ के कथनानुसार प्रत्येक साहित्यकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि वह जब भी लिखे तो ऐसी रचना लिखे जो त्रुटियां से रहित हो और समाज को कुछ दिशा दिखाने वाली हो। वीना टंडन ‘पुष्करा’ टंकण की अशुद्धियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए रचना को कई बार स्वयं पढ़ने से लेखक स्वयं समझ जाता है कि गलती कहां पर हुयी है और वह सुधार कर सकता है। डॉ सरोज लिखती हैं कि विभिन्न मंचों पर अनवरत लेखन कार्य बुरा नहीं, पर त्रुटि युक्त, दोष युक्त, नीरस रस, भाव से रहित, अलंकारिक भाषा से शून्य, काव्य सौन्दर्य से हीन रचना उपहास का पात्र बनती है। अशोक दोशी ‘दिवाकर’ के मनोभाव - काव्य रचना लिखने का मेरा शौक है, इस शौक को इस त्रुटि दोष की वजह से अवरोधित कर लेता तो, फिर तो मैं वहीं रुक जाता। दिव्या भट्ट ‘स्वंय’ का मानना है लेखक कम लिखें, लेकिन उत्तम भाव और त्रुटि रहित रचना का सृजन करें। इससे हमारा लेखन उत्कृष्ट और गुणवत्ता लिए होगा। स्वर्ण लता सोन कहती हैं हम दूसरे प्रबुद्ध रचनाकारों की रचनाएं पढ़ कर भी सीख सकते हैं और अपने लेखन में सुधार कर सकते हैं। नन्दा बमराडा ‘सलिला’ लिखती हैं एक लेखक की कलम में समाज को बदलने की ताकत होती है वह जिस प्रकार से लिखेगा समाज उसे उसी रूप में स्वीकार करता है। डॉ पूनम सिंह ‘सारंगी’ कहती हैं हम सब लिखते हैं वह हमारा लेखन कुछ समय पश्चात इतिहास भी बन जाता है, शायद वह किसी के लेखन का प्रेरणा तत्व भी बन जाये आगे की पीढ़ी हेतु। सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’ के अनुसार जहाँ लेखन एक कला है वहीं त्रुटि रहित लेखन निरन्तर अभ्यास के साथ ही साथ पुनरावृत्ति की आदत से ही सम्भव है। नीरजा शर्मा ‘अवनि’ की सलाह है सकारात्मक सोच के साथ चाहे थोड़ा ही लिखें पर मनभावन लिखें तो सबको अच्छा लगता है। नीतू रवि गर्ग ‘कमलिनी’ कहती हैं लेखन कार्य में त्रुटि न रहे इसके लिए हमें सबसे जरूरी काम पढ़ने की आदत डालनी बहुत ही जरूरी है। पढ़ने से हमें दूसरों के भावों को जानने समझने का मौका मिलता है। अरुण ठाकर ‘जिंदगी’ के अनुसार लेखन की कमियों से बचने के लिए नियमित पढ़ना और लिखना इसके लिए अनिवार्य है तभी आप इसके स्वरूप को समझ सकते है| युद्धबीर सिंह बिष्ट का मानना है कि वो जितना लिखेंगे उतना लेखनी में सुधार आयेगा साहित्य का संसार बहुत बड़ा है यह महासागर की तरह बड़ा एवं गगन की तरह अनन्त है| फूल चंद्र विश्वकर्मा ‘भास्कर’ के अनुसार लेखन में त्रुटियाँ लेखन के भाव सौंदर्य को प्रभावित करते हैं। इसलिए शब्द संयोजन, भावानुकूल शब्द चयन, वर्तनी तथा वाक्यगत दोषों का परिमार्जन, संशोधन कर प्रेषित किया गया लेखन पाठकों को अधिक प्रभावित करता है। संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ कहते हैं कि विभिन्न मंचों पर सक्रिय सहभागिता न केवल विचारों का आदान-प्रदान करती है, बल्कि यह हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है। इस सहभागिता से हम समाज की समस्याओं को समझने और समाधान सुझाने में योगदान दे सकते हैं। मंचों पर हमारी उपस्थिति जितनी प्रभावशाली होगी, हमारा प्रभाव उतना ही गहरा होगा। संतोषी किमोठी वशिष्ठ ‘सहजा’ के अनुसार शब्दों से भरी शाश्वत भाषा शैली से व्याकरण सारणी सुशोभित हो जाती है।

मंच की संस्थापिका अध्यक्षा दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के अनुसार सटीक, सारगर्भित व त्रुटि रहित आलेख ही अधिक प्रभावोत्पादक होते हैं ऐसा हमें सोचना ही होगा। कविताओं और रचनाओं में त्रुटियां अर्थ का अनर्थ करती हैं यह भी हमें जानना ही होगा। यही है आज के विषय का मर्म, लिखें, लिखते रहें परंतु त्रुटियों को नज़रअंदाज़ न करें। अंत में यही कहना चाहूँगीं कहीं भी किसी भी मंच पर, समाचार पत्र में, पत्रिका में स्वयं ही बार-बार पढ़कर संशोधन करने का प्रयत्न करें और आश्वस्त होने पर ही अपनी रचना प्रेषित करें।

विभिन्न मंचों पर अनवरत सहभागिता के साथ त्रुटि रहित लेखन केवल एक आवश्यकता नहीं, बल्कि सफलता की कुंजी है। यह पाठकों से जुड़ने, अपनी बात को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने और व्यक्तिगत तथा पेशेवर स्तर पर उन्नति के लिए अनिवार्य है।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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