काव्य :
याद तुम्हारी
याद तुम्हारी मन उपवन में
तितली सी मंडराती है
प्रीत रीति क्यों ऐसी होती
तन में अगन लगाती है
यद्यपि साथ रहा है छोटा
क्यों ज्वाला धधकाती है
रह रह चैन पलायन करता
धक धक क़रती छाती है
इत उत नैना खोजा करते
ऋतु धोखा दे जाती है
बासंती खुशबू फूलों की
तेरी महक जगाती है
देखूँ टेसू,आम के मंजर
सरसों रंग जगाती है
बाग,बगीचे न्योता देते
कोयल सपन दिखाती है
सजनी ये दर्शन की प्यासी
गीत तुम्हारे गाती है
मेरी प्रीत के दीप तुम्ही
मेरा तन ही बाती है
याद तुम्हारी मन उपवन में
तितली सी मंडराती है
स्मृति पीड़ादायनी होती
घाव नये पनपाती है
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र,भोपाल
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