काव्य :
'भरो जोश नूतन नये साल में तुम'
विदाई करो साल यह जा रहा है। सदा खुश रहो सब कहे जा रहा है। भरो जोश नूतन नये साल में तुम, बनो आप दिनकर समां गा रहा है।
नये लक्ष्य साधो नये मान पाओ, हँसाओ खुदी को यह समझा रहा है। नयी प्राचियों से नई रश्मियों का, नया तेज देखो बढ़ा आ रहा है। नई किसलयों की नई खुशबुएं ले, नये रंग उपवन सुमन पा रहा है। नई ले तरंगें नई भर उमंगें,
नया वर्ष सपने नये ला रहा है। कहां याद करता मधुप दुख दिनों को, नया पुष्प अब बस उसे भा रहा है। रुके कब सरित जल लगी ठोकरों से, उछल सिंधु में यह समा जा रहा है।
सजाओ सभी नव्य अरमां खुशी के, लगाओ गले हर्ष अकुला रहा है। निराशा सभी त्याग दो आज से सब, नया रंग दीपक गगन छा रहा है।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहांपुर उप्र