ad

धर्म की अवधारणा के पीछे कल्याणकारी भावना का जो निहितार्थ होता है ,वही सच्चा राष्ट्रधर्म है - डा.मोहन तिवारी आनंद


 

धर्म की अवधारणा के पीछे कल्याणकारी भावना का जो निहितार्थ होता है ,वही सच्चा राष्ट्रधर्म है - डा.मोहन तिवारी आनंद 

भोपाल । तुलसी साहित्य अकादमी मुख्यालय भोपाल द्वारा संचालित की जा रही सृजन श्रंखला - 44 के अंतर्गत  गणतंत्र दिवस पर केन्द्रित वीर रस की रचनाओं पर काव्य गोष्ठी  आयोजित की गई। 

     कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. मोहन तिवारी आनंद, राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल ने की, मुख्य अतिथि रायपुर छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार, यूट्यूबर श्री सुनील कुमार जायसवाल ,विशिष्ट अतिथि सागर से पधारे प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री वृन्दावन राय सरल जी तथा सारस्वत अतिथि सीहोर से पधारे श्री सुरेश कुमार जायसवाल जी रहे।

     कार्यक्रम का सफल संचालन प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं समीक्षक श्री गोकुल सोनी  ने किया ।

     मंचस्थ अतिथियों ने माता सरस्वती जी की पूजा अर्चन तथा दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डा. अशोक तिवारी अमन ने माॅं वीणापाणी की वंदना की। 

     मंचस्थ अतिथियों के स्वागत उपरांत  म.प्र.साहित्य साधना मंच एवं जन परिषद  सीहोर द्वारा डा.मोहन तिवारी आनंद को सरस्वती साहित्य रत्न सम्मान -2024 से सम्मानित किया ।

     द्वितीय सत्र में गणतंत्र दिवस पर केन्द्रित रचनाओं का पाठ किया गया जिसमें प्रथम कवि के रूप में श्री कमलेश नूर ने-

" मां भारती की आंखों के तारे शहीद हैं। मिट्टी के ज़र्रे ज़र्रे को प्यारे शहीद हैं।ग़ज़ल पढ़ी।

श्री रमेश नंद ने -"महफिल में तेरी ग़ज़ल पढ़ते पढ़ते।

कहीं हो न देरी ग़ज़ल पढ़ते पढ़ते।" ग़ज़ल को पढ़ा। 

तुलसी साहित्य अकादमी के सचिव डा.शिवकुमार दीवान ने  वर्तमान राजनीति पर गीत पढ़ा-"प्रजातंत्र के मंदिर में प्रश्नों की कद्र नहीं।

पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देता कोई नहीं।"


श्री धर्मदेव सिंह ने -"मत पूछो कि गांव से जुदा होकर कैसा हूं। "  रचना का पाठ किया ।


गोपाल देव नीरद ने- 

" भर खिलाफ इस धूप के मौसम बनाना चाहिए।

चीथड़ों से ही सही परचम बनाना चाहिए।" ग़ज़ल का पाठ किया 


डा.अशोक तिवारी अमन जी ने देशभक्ति का गीत पढ़ा-"मैं खुशियों का गीतकार हूं,खुशी बांटने आया हूं।" ।

कमल किशोर दुबे ने -"चुने चुनाए बिकते देखे, कालेधन के खोखे में।"  पढ़ा।

डा.प्रभा मिश्रा ने-"आज बरसों बाद मन संवेदना से भर गया, आइना अपना वो आकर नाम मेरे कर गया।" ग़ज़ल पढ़ी।


वरिष्ठ साहित्यकार श्री गोकुल सोनी ने कुंभ के मेला का चित्र खींचते हुए पढ़ा,

  "मेला तो भई ग़ज़ब भरो तो,

  जगह जगह पे ठट्ट लगो तो, 

  निकल रहे थे खूब अखाड़े,

  साधु संत सपरवे वारे, 

मचगई रेलम पेला,चलो कुंभ को मेला।"

का पाठ किया।


श्री राम मोहन चौकसे ने -

" उजाले की दरकार तो हमें भी थी जनाब। दिए बुझाने वाले का पता तो लगाइए।"

कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि श्री सुरेश राय सीहोर ने -" मुझे आवाज करने वाले,तो बेशुमार मिले। मुझे कुछ वफादार तो कुछ गद्दार मिले।" का पाठ किया।

सागर से आये कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बृंदावन राय सरल ने -"कुर्सियों पर खून के छींटें मिले। आदमी कद से बहुत नीचे मिले।" ग़ज़ल का पाठ किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुनील  कुमार जायसवाल जी ने -

" तू रोज़ करें तकरार,अरे रे बाबा न बाबा",

कार्यक्रम अध्यक्ष डा. मोहन तिवारी आनंद  ने राष्ट्रभक्ति पर केन्द्रित गीत पढ़ा-  "गुनगुनाना चाहता हूं, 

    गीत उनकी शान के।

    देश पर जो मर मिटे हैं,

    वीर हिन्दुस्तान के।

    लाल जोड़े में सजीं 

    दुल्हन बनी बैठीं रहीं, 

    लौट कर जो घर न आए, 

    हो गये मैदान के।।"


    गोष्ठी में 26 कवियों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं जिनमें वर्मा भरोसे, महाकवि पं.हरिशंकर दुबे, आर.पी.श्रीवास्तव, श्री हरिओम श्रीवास्तव,बिहारी लाल सोनी, विश्वनाथ शर्मा विमल, दिनेश गुप्ता मकरंद, सरोज लता सोनी, सुषमा श्रीवास्तव,आदि प्रमुख रहे।

अंत में तुलसी साहित्य अकादमी के महासचिव डा,.शिव कुमार दीवान ने सभी रचनाकारों का आभार ज्ञापित किया।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post