काव्य :
मौन...
अपमान का अपशब्द का,
अपकार का अवरोध का,
निशब्द विरोध ही "मौन" है।
प्रपंच के रंगमंच का
षडयंत्र के "सरपंच" का,
निशब्द विरोध ही "मौन " है।
मिथ्या के अपयश का भी
और ,
झूठी इस प्रशंसा का
निशब्द विरोध ही" मौन" है।
हर कर्म का, उद्देश्य का
सत्कर्म का ,हर त्याग का,
अप्रचार करना ही "मौन " है।
निंदको ने हर उस मौन व्यक्ति को चुनकर उसकी निंदा
कर उसे "चुनिंदा "बना दिया,
और वे "चुनिंदा" व्यक्ति आज उत्कृष्ट पदों पर पदासीन हैं।
' ये परिणाम है," मौन " व्यक्ति के संयम का ,
जो उसे" पल्लवित "करता है'।
मौन होना वास्तव में बलवर्धक औषधि के समान है।
- आदर्श ठाकुर
(डॉ.हरीसिंह गौर वि.वि. सागर ,म.प्र)
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