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काव्य : री सखी बसंत आया है -राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी'


 काव्य : 

री सखी बसंत आया है


मन मत्त मंजुल- बसंत आया 

वन कुंज कुंज उल्लास छाया 

शीत अंत, हेमंत बसंत आया

 तन, चंदन सा बन आया है

      री सखी बसंत आया है

 बैरी हो गई पछुआ पवन 

उमंग जगाती, छलती मन

सजी खड़ी सरसोंपीरीकुंवारी

हरा सौंदर्य नीली गोटाकिनारी  

ऐसा संदेश पवन लाया है

        री सखी  बसंत आया है तितलियों ने सजाए वंदनवार पुष्पों के संग किए अभिसार 

पुष्प कालि के मुखर है गायन 

कलियों ने छोड़े  घर -आंगन मौसम मनभावन आया है 

री सखी बसंत आया है  द्रुतझरण पल्लवों का शोर है 

नित्य नृत्य करता मन मोर है 

सोंधी-सोंधी महक चंहु ओर है 

आम्र वाटिका में आये बोर हैं

ऐसे में मन तरस आया है 

      री सखी बसंत आया है 

किरण किरण प्रखर वितान 

मधु ऋतु का है, वृत्त विहान  

कोयल सरिस सुरीली तान

चंग ढोल पे राग फाग गाया है

तो तन महक महक आया है

    री सखी बसंत आया है।

    

 - राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी'

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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