काव्य :
मैं और वैलेंटाइन
आज करूँ स्मरण प्रेम को
हे माँ,बाबूजी,बहन व भैया
इसके आकर्षण व शक्ति से
खे रहा मैं ,सफल ये जीवन नैया
नमन करूँ सम्बन्ध को मैं
जो है प्रफुल्लित हमारे बीच
गुरु,शिष्य,मित्र,व पति पत्नी
अजीवन देते जिसको सींच
आशीष माँगूँ आज ही हे भगवन
रहे जीवित सतत ये मानव मन
दुःख,दर्द,भूख,पीड़ा,क्रूरता हारे
विजयी रहे ब्रज,मनुज धर्म का मन
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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