काव्य :
मेरे मदन गोपाल
कन्हैया तुम्हारे बांसुरी की
सुन पुकार,
चली आई राधा तुम्हारी
जमुना के पार ।
पनघट पर घघरी भरने का,
तो बस एक बहाना है।
दरस तुम्हारा पाकर,
इन नैनन की प्यास
बुझाना है।
मेरे मन मंदिर में
बसने वाले,ओ कान्हा,
अपने मन के इक
छोटे से कोने में
मुझे भी बसाना।
मेरे नटखट छलिया,
मैं बन गई तुम्हारे
प्रेम की जोगन।
ना भाए अब तुम बिन,
मुझे मेरा घर आंगन।
दर्शन को तुम्हारे कन्हैया ,
हम ग्वालन हैं
कब की प्यासी ,
जीवन भर के लिए
बनना है गोविंद के
चरणों की हमको दासी ।
सांवरे तुम्हारे तो
नाम अनेक किस नाम से
तुम्हें पुकारू मै
रट रट कर नाम तुम्हारा,
सम्पूर्ण जीवन सवारू मैं गोपियों के प्रियतम तुम,
गोकुल के मनमोहन ग्वाल
जग के पालन करता तुम्हीं,
तुम्हीं मेरे मदन गोपाल।
- अंजना दिलीप दास
बसना .महासमुंद (छत्तीसगढ़)