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कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है - संतोष श्रीवास्तव


 

कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है - संतोष श्रीवास्तव

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"सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने की ऊँच- नीच समझाना माँ का ही काम होता है। विशेषकर बेटी को समझाना..। माँ- बेटी का जुड़ाव तो इस क़दर मज़बूत होता है कि वे बिना कहे ही एक, दूसरे की बात समझ लेती हैं..।”

(मीनाक्षी दुबे की कहानी, ‘दयनीय दंभ’, का एक अंश।)

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''अविश्‍वास और संदेह के बीज इतनी गहराई तक पहुँच चुके जिससे चारों तरफ जहरीली गंध आने लगी थी। बेरोजगारी से हताश ऐसे बच्‍चों के अंदर की अकड़ नहीं गई बल्कि पहले से ज्‍यादा अहमक होते गए वे। अब किसी की सलाह सुनने समझने को तैयार ही नहीं। सपने इतने ऊँचे जिन्‍हें जमीन पर उतारने की सामर्थ्‍य उनमें से किसी में नहीं मगर अहंकर इतना कि पढ़े लिखे की बात सुनकर भवें चढ़ जातीं।”

(रजनी गुप्त की कहानी, ‘धूल भरी पगडंडियाँ’ का एक अंश) 

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भोपाल।। अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का एक अभिनव आयोजन, कहानी संवाद ‘दो कहानी- दो समीक्षक’ दिनाँक- 14 अगस्त 2025, गुरुवार को शाम 6 :00 बजे, गूगल मीट पर आयोजित किया गया। 

इस अवसर अध्यक्षता कर रही अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच की संस्थापक अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा कि - 

“आज का युवा कहानी साहित्य से जुड़ नहीं पा रहा है। उसकी एक बड़ी वजह ये है कि हम युवाओं से जुड़े विषयों पर नहीं लिख रहे हैं। आज का युवा संघर्षशील है। उसकी अपनी समस्याएँ हैं। उसे रोज़गार के लिए देश-विदेश में पलायन करना पड़ रहा है। हमें उसके दर्द को पहचानना होगा। आइये, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, आज हम संकल्प करें कि हम युवाओं से जुड़े विषयों को कहानी का कथानक बनाएंगे।”

मुख्य अतिथि पवन जैन ने मीनाक्षी दुबे की कहानी ‘दयनीय दम्भ’ की समग्र रूप से समीक्षा करते हुए कहा कि - 

“कहानी के शीर्षक, ‘दयनीय दम्भ’, ने मुझे बहुत प्रभावित किया। दरअसल कहानी का  शीर्षक ही कहानी का प्रवेश द्वार होता है। यही पाठक के मन में कहानी पढ़ने की जिज्ञासा पैदा करता है। यह कहानी एक माध्यम वर्ग के परिवार की समस्याओं को उजागर करती है। इसका कथानक बहुत प्रभावी है। आज कहानी साहित्य का एक सशक्त हिस्सा बनती जा रही है।”   

विशिष्ट अतिथि, जया केतकी शर्मा ने रजनी गुप्त की कहानी ‘धूल भरी पगडंडियाँ’ की विवेचना करते हुए कहा कि -

“हम स्वयं, कहानी सुनते हुए धूल भरी पगडंडियों में खो गए थे। इसमें कोई शक नहीं कि हमारा जीवन चरित्र बदलता जा रहा है। आज के बच्चे अधिक स्वतंत्रता के कारण बिगड़ते जा रहे हैं। वे केवल अपनी ही दुनिया में रहना चाहते हैं। इसी तरह बच्चियाँ भी बिगड़ रही हैं। उन्हें सही रास्ता दिखाना हमारा फ़र्ज़ है।”

डॉ सुशीला टाकभौरे और शोभा शर्मा ने दोनों कहानियों पर अपनी, संक्षिप्त समीक्षात्मक टिप्पणी भी दी।   

अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच की मध्य प्रदेश इकाई की निदेशक महिमा श्रीवास्तव वर्मा ने सभी साहित्य सुधीजनों का आत्मीय स्वागत किया। कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच के महासचिव मुज़फ्फर सिद्दीकी ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश वासियों को बधाई दी। परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से कार्यक्रम को सफल बनाने में जिन्होंने ने भी सहयोग किया उन सभी का आत्मीय आभार भी व्यक्त किया। 

- मुज़फ़्फ़र सिद्दीकी

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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