जन्माष्टमी पर विशेष :
कन्हैया ने जन्म लियो है
भारतीय मनीषा में कृष्ण एक सम्यक दृष्टि,सम्यक विचार धारा और कुशल नेतृत्व,प्रवीण कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं,, जहां एक ओर बालकृष्ण अपनी लीलाओं से,राग और लास्य की सृष्टि करते हैं वहीं कुरूक्षेत्र के भीषण युद्ध में एक ज्ञानी ,प्रातिभ,महान उपदेशक और आत्मज्ञानी नजर आते हैं,, अपने ही परिजनों की हत्या से क्षुब्ध अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया और कर्म की एक नमी परिभाषा गढ़ी थी,।
उनका जन्म और उससे जुड़ी घटनाएं भी कम रोचक और रहस्यमय नहीं थीं,,,,भागवत में वर्णित है,*अर्ध रात्रि का समय.. मुसलाधार वर्षा ...और उफनती, गरजती ..यमुना की लहरें.. न जाने कौन सा अनिष्ट होने वाला है !..लहरों को चीरते ,बासुदेव आगे बढ़ते जा रहे थे, छोटी सी टोकरी में पुत्र कृष्ण को छिपाए, दुश्चिंताओं से घिरा उनका मन, ,,पर एक क्षीण सी आशा क़ि गोकुल पहुँच कर उनका प्यारा ललना कंस के क्रूर हाथों से बच तो जायेगा ''।.जब भी इस कथा को पढती हूँ या सुनती हूँ, तो अद्भुत रोमांच हो आता है. आँखें भींगने लगती हैं, नन्हे से कृष्ण की प्राण रक्षा में निरत माता पिता की भावनाएं मन को उद्वेलित करने लगती हैं, पर तुरंत मन संभल जाता है, -''तीन लोक के नाथ ,कन्हैया ने जनम लियो है '' अरे, वह कान्हा तो त्रिभुवन का स्वामी है, स्वयं परम ब्रह्म है, उसे कैसा डर?..स्वयम उसी ने तो गीता में उद्घोष किया था --' यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत! ,.अभ्युत्थानं स्व धर्मस्य तदात्मनम सृजाम्यहम ,परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम, धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे''..
धर्म के उत्थान का नियामक ,पृथ्वी का रक्षक, जब अवतरित होता है, सृष्टि के सारे रहस्य खुद ही खुलने लगते हैं, और लौकिकता के धरातल पर उतर कर वह एक भोला भाला शिशु बन नन्द यशोदा के आँगन में अनेक लीलाओं का जनक बन जाता है. ...गोकुल में कान्हा का स्वागत बड़े ही हर्ष व् धूम धाम से होता है, --'''समूचा गोकुल गाँव आज नृत्य कर रहा है, खुशियाँ मना रहा है,माँ यशोदा का हर्ष तो छिपाए नहीं छुपता ,कान्हा कोपालना में झुलाते हुए माँ का मोद भरा मन बार बार पुलक उठता है, --''जसोदा हरि पालने झुलावै' कृष्ण अब कुछ बड़े हो गए हैं, मैया के आँगन में घुटनों के बल चलते हुए ,अपनी प्यारी मुस्कान से सबको मोह लेते हैं, -''किलकत कान्ह घुटुरवन आवत, भूषण,वसन,रेणु तन मंडित, मनहिं मन कछु गावत''. मुख पर दधि लपेटे ,धुल धूसरित बाल कृष्ण का यह रूप किसके मन को मोहित नहीं करता?--''धूरि भरे अति शोभित स्याम जू ,तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी,खेलत खात फिरें अंगना, पग पैंजनी बाजत पीरी कछौटी, काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी''. और फिर एक दिन घुटनों के बल पर चलता चलता वह बड़ा हो गया, यसोदा को मैया और नन्द को बाबा बुलाने लगा. -''कहन लागे मोहन मैया मैया '' घर के आँगन से निकल बाल सखाओं के संग अन्य गोपियों के दूध माखन चुरा कर खाना तो उसका प्रिय खेल था, और चोरी करते पकडे जाने पर कितनी सफाई से झूठ बोलना भी सीख गया है. ..मैया मैंने तो माखन नहीं खाया-'' मैया मोरी मै नहीं माखन खायो,भोर भये गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो, ..साँझ परे घर आयो..''पर मैया जानती है अपने लाला की शरारत को, वह कृत्रिम क्रोध कर उसे दंड देने की सोचती है, तभी कृष्ण कह उठते हैं, --''तुन मोहिं को मारन सीखी, दाऊहिं कबहूँ न खीझे ,''माँ का भोला मन पिघल जाता है, ''मोहम मुख रिस की ये बातें ,जसुमति सुन सुन रीझै''. बलदाऊ भैया से हमेशा उनकी ठनी रहती है, --''मो सों कहत मोल को लीन्हो, तू जसुमति कब जायो?; ''माँ भला पुत्र की हताशा और निराशा से कैसे किनारा कर सकती है?वह उन्हें चाँद ,चिड़ियाकी बातें कह करऔर बलदेव को धूर्त बता कर बहला लेती है .--''सुनहुँ कान्ह, बलभद्र चबाई, जनमत ही सौं धूत ,सुर श्याम मोहिं गोधन की सौं, होऊं माता तू पूत ''बाल काल की लीलाओं का अंत नहीं, वह परम पुरुष कृष्ण एक सरल सामान्य बालक सा आचरण करते हुए अपने माया जाल से पूरे समाज को चमत्कृत किये रहता था. जैसे हमारे ही घर आँगन में खेलता कोई नन्हा शिशु. सुरदास जी ने कृष्ण की लीलाओं का गान कर उनके जीवन के लास्य को वात्सल्य, प्रेम, समाज हितकारी, ओजस्वी ,रूप को अत्यंत सुन्दर ढंग से रूपांकित किया है. वहीं महाभारतकार ने उनके एक योद्धा, मित्र,समदर्शी,कूटनीतिग्य , देव गुणों से युक्त स्वरूप को महिमा मंडित किया है. कृष्ण का जीवन आज भी प्रेरित करता है,समाज के बदलते परिवेश में आज कृष्ण की गीता प्रासंगिक हो गयी है, कर्म का उद्घोष कर जागरण का गीत फिर गाये जाने की जरुरत है,कृष्ण जैसी सरलता ,प्रेम की उच्चता, समाजहितकारी भावनाएं और सबसे बढ़ कर वह नन्हा कृष्ण कन्हैया जो सबके दिलों में निवास करता है ,बड़ा याद आता है.. तभी तो जन्माष्टमी में हर माँ का ह्रदय गा उठता है--''कनहैया ने जनम लियो है''।
. --पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर- झारखंड. भारत