काव्य :
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
प्रतीक्षा
देख देख राह अब पथराई अँखियाँ
तुम होगे यह सोच भर आई अँखियाँ।
हर दस्तक पर विश्वास छला तुमने
हर विश्वास पर रूप बदला तुमने
हर रूप का स्वरूप बदला तुमने
अरु मैं बदला आरोप मढ़ा तुमने।
हर स्वर पर कान बन गई अँखियाँ
देख देख राह अब पथराई अँखियाँ।
तुम्हें सखा बनाया माना पर तुम न बने
साँस साँस पुकारा, रहे तुम बिना सुने
पता नहीं कौन अरु कितने तुम्हारे बने
किसके और कितनों के तुम अपने बने
छल तक देख पाने, तरस गई अँखियाँ
देख देख राह अब पथराई अँखियाँ।
बहुत भये कहते गए तुम करुणा सागर
कबहुं न छोड़ी किसी की रीती गागर
उन पर भी अब विश्वास नहीं नटनागर
विश्वास दिलाना होगा मेरे दर आकर।
तुम्हारी निष्ठुरता के गीत गातीं सखियाँ
देख देख राह अब पथराई अँखियाँ।
- डॉ. सत्येंद्र सिंह
पुणे, महाराष्ट्र
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