काव्य :
मौसम आज वसंती आया
गीत
मत रूठो अब छोड़ो गुस्सा, प्रेम- रंग जीवन में छाया
आ जाओ भुजपाशों में तुम, मौसम आज वसंती आया।
बौर आम के पेड़ों पर है
मधुर गंध अद्भुत बिखरी
सरसों पर पीले फूलों से
कितनी सुंदरता निखरी
आज हरी साड़ी पर जिसने
ओढ़ी है पीली चादर
ऐसी धरती पर पाते हैं
कामदेव-रति अब आदर
भँवरों ने मकरंद यहाँ पी,देखो! कैसा रास रचाया
आ जाओ भुजपाशों में तुम, मौसम आज वसंती आया।
वृक्ष, लताओं, पौधों पर हैं
तरह-तरह के पुष्प खिले
मँडराती तितलियाँ यहाँ पर
नर- नारी भी हिले-मिले
मधुमक्खी भी फूलों से अब
जी भर रस को पाती हैं
इसीलिए इस मौसम में वे
मधु भी खूब बनाती हैं
हुई विदाई अब पतझड़ की,कोयल ने भी राग सुनाया
आ जाओ भुजपाशों में तुम, मौसम आज वसंती आया।
बूढ़े और जवान यहाॅं पर
मस्ती में सब झूम रहे
जीवन में रस जिनके भरता
वे किस्मत को चूम रहे
तन -मन में हैं नई उमंगें
आज सुहाना पवन चला
खिली गुनगुनी धूप वसंती
शीत ऋतु का दौर टला
वातावरण सलोना इतना, खूब यहाॅं है सबको भाया
आ जाओ भुजपाशों में तुम, मौसम आज वसंती आया।
- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास'
बरेली, (उ० प्र०)
मोबा० - 98379 44187