ad

तथ्यों और विशिष्टताओं के आईने में ग्वालियर व्यापार मेला - मुकेश तिवारी ‌‌ स्वतंत्र पत्रकार


 तथ्यों और विशिष्टताओं के आईने में ग्वालियर व्यापार मेला 

   - मुकेश तिवारी ,स्वतंत्र पत्रकार

पिछले छः दशकों से भी अधिक समय से ग्वालियर मेले को करीब से देख रहा हूं . 1905 से अब तक की  वैभव शाली यात्रा तय करते हुए ,120 साल का यह मेला साल दर साल जवान होता जा रहा है .इसका नित नयापन कभी पुराना नहीं होता . उसकी सुंदर व्यवस्था से आकर्षित होता रहा हूं .अष्टकोण सेक्टरों में विभाजित दुकानों के बीच के सभी चौराहे छतरियां चबूतरे ग्वालियर मेले में पक्की और अस्थाई दुकानों की व्यवस्था बिजली और पानी का सुंदर प्रबंध फ्लैश के स्थाई शौचालय तथा मूत्रालय ,पक्की सड़कों सहित मेले के दोनों तरफ सेंड स्टोन से बने आधा दर्जन कलात्मक दरवाजे आदि कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो देश के अन्य मेलों में देखने को नहीं मिलती । इन विशेषताओं के कारण ग्वालियर मेले में कहीं भी गंदगी नहीं होती, और व्यापारियों अथवा मेला घूमने आए सैलानियों को किसी प्रकार की असुविधा का सामना भी नहीं करना पड़ता।

हमारे देश में मेलों की परंपरा बहुत पुरानी है मेले हमारे धार्मिक और आर्थिक जीवन के अंग बन गए हैं ।मेलों की शुरुआत कब हुई यह निश्चित रूप से बताना मुश्किल है ।तथापि हम यह जानते हैं कि हमारे देश में सबसे पुराने मेले कुंभ तथा अन्य धार्मिक पर्वों के मौके पर लगने वाले मेले हैं । कुंभ की मान्यता हजारों वर्ष पुरानी है। कुंभ का मेला समुद्र मंथन की किवदंती से जुड़ा हुआ है । समुद्र मंथन हकीकत में कभी हुआ होगा यह कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता सिर्फ पंडों और पुरोहितों के किंतु प्राचीन काल के मेलों का उद्देश्य बहुत कर धार्मिक होता था ,उनका व्यावसायिक पहलू गौड़ होता था । कुंभ का मेला तथा सूर्य ग्रहण के मौके पर तीर्थों में आयोजित होने वाले कुरुक्षेत्र का मेला त्रिवेणी प्रयाग का मेला इसके उदाहरण हैं ।

किंतु इन धार्मिक मेलों में भी जब लाखों लोग एकत्र होने लगे तो उनकी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वहां व्यावसायियों की भी उपस्थिति आवश्यक होने लगी, फिर व्यवसायियों और निर्माताओं ने सोचा कि अपना माल बेचने के लिए इन लाखों लोगों की उपस्थिति का लाभ क्यों नहीं उठाया जाए ,अतः व्यापारी और निर्माता अपना माल बेचने के लिए इन मेलों में जमा होने लगे तथा तीर्थ यात्री भी अपनी आवश्यकता अनुसार इन वस्तुओं को खरीदने लगे तथा मेले आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने लगे । यदि हम व्यापारिक मेलों के इतिहास का अध्ययन करें तो हम यह पाते हैं कि जब मुद्रा का प्रचलन नहीं हुआ था .तब आज के अर्थ में व्यापार का अस्तित्व ही नहीं था ,आज का व्यापार बिचौलियों द्वारा चलाया जाता है तथा यह मुद्रा पर ही आधारित है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु या सेवा का मूल्य मुद्रा में ही निश्चित किया जाता है। जब मुद्रा का जन्म नहीं हुआ था । तब व्यापारी नहीं थे अतः वस्तुओं के उत्पादक किसी महत्वपूर्ण और सुविधाजनक स्थान पर अपने उत्पादनों के साथ एकत्र होते थे और अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का विनिमय कर लेते थे । तथा किसान अपना अनाज देकर कपड़ा बुनने वालों से कपड़ा खरीद लेता था और जूता बनाने वाले से जूता खरीद लेता था ।इस विनिमय के फल स्वरुप कपड़ा बुनने वाले और जूता बनाने वाले की अनाज की आवश्यकता पूरी हो जाती थी। हमारे देश में साप्ताहिक हाटों का जन्म भी इसी प्रकार हुआ। यह साप्ताहिक हाट अभी भी कहीं-कहीं लगती हैं । मेला हमारे देश और प्रदेश में लगने वाली साप्ताहिक हाटों के ही विकसित बृहद रूप है प्राचीन काल में हमारी अर्थव्यवस्था भिन्न थी अतः मेलो और हाटों का स्वरूप भी भिन्न था जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है हमारे देश में मेलो का जन्म मुख्यतः धार्मिक कारणों से हुआ किंतु धीरे-धीरे यह मेले व्यवसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनते गए उदाहरण के लिए हम अपने पड़ोसी आगरा जिले में लगने वाले बटेश्वर के मेले को ले यह कार्तिक पूर्णिमा पर यमुना स्नान की दृष्टि से प्रारंभ हुआ किंतु बाद में एक व्यवसायिक मेले के रूप में विकसित हो गया ।पशुओं की बिक्री की दृष्टि से तो यह उत्तर भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मेला बन गया है। अप्रैल मास में भिंड जिले के मेघ पुरा का मेला लगता है यह भी पशु मेला ही है ग्वालियर मेले का प्रारंभ भी 1905मे तत्कालीन सिंधिया शासक माधवराव सिंधिया प्रथम ने अकाल के बाद लोगों को रोजगार दिलाने के मकसद से पशु मेले के रूप में की थी ।

ग्वालियर का मेला

अब हम मुख्यतः ग्वालियर मेले की चर्चा करें ग्वालियर का मेला वर्तमान में शुद्ध आर्थिक मेला है इसकी शुरुआत भूतपूर्व ग्वालियर रियासत को आर्थिक दृष्टि से विकसित करने के लिए की गई थी , ग्वालियर रियासत के आर्थिक विकास का बीड़ा सर्वप्रथम स्वर्गीय महाराज माधौराव शिंदे (सिंधिया )ने उठाया था उन्होंने इस तथ्य को समझा कि जब तक औद्योगिक और व्यावसायिक दृष्टि से ग्वालियर राज्य का विकास नहीं होगा तब तक यह क्षेत्र गरीब और पिछड़ा बना रहेगा अतः उन्होंने राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए ठोस कदम उठाए उन्होंने ही घनश्याम दास बिरला को ग्वालियर में अपना कपड़ा मिल स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया अनेक उद्योग सरकारी क्षेत्र में स्थापित किए गए तथा ग्वालियर पोटरीज,लेदर फैक्ट्री ,ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्कशॉप ,आदि इतना ही नहीं कृषि की उन्नति के लिए उन्होंने सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अनेक बांध बनाने की योजना बनाई ।

ग्वालियर का मेला भी इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए उन्होंने ही प्रारंभ किया था,

इतिहास ग्वालियर मेला 

1905 में सागर तल के निकट तकरीबन 50हजार वर्ग फीट क्षेत्र में प्रारंभ हुआ ,1967-68मे हीरक जयंती1983-84 में प्लेटिनम जयंती , (1980 में मनाई जाने वाली थी , लेकिन कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका ) 2004-5में इसकी शताब्दी मनाई गई ।

प्रारंभ में यह मेला सागर ताल के निकट रिक्त पड़े मैदान में लगता था क्योंकि वहां पानी की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध थी उस दौरान यह मेला पशु मेला था धीरे धीरे-धीरे इसका विस्तार होता चला गया जिसके लिए सागर ताल के मैदान में लगने वाले मेले में प्रतिवर्ष अस्थाई दुकानें बनाई जाती थी तथा इसके लिए कारोबारियों को बांस बलिया निशुल्क दी जाती थी तथा पशुओं के चारे के लिए उम्दा व्यवस्था भी रहती थी।

इस मेले में ही प्रकाश और सुरक्षा की बहुत बेहतरीन व्यवस्था होती थी, सर्दी से बचने के लिए मेला अवधि में अलाव जलाए जाते थे उस समय मेले में आने जाने के लिए बैल गाड़ियों और तांगों का उपयोग होता था ।इस मेले में व्यापारियों तथा ग्राहकों को अधिकाधिक संख्या में आकर्षित करने के लिए ग्वालियर राज्य के बाहर से आने वाले माल पर लगने वाली सीमा शुल्क में पर्याप्त रियायत दी जाती थी जो 50% तक होता था परिणाम स्वरुप व्यापारी बड़ी मात्रा में बाहर से माल मंगाते और रियायती दामों पर बेचते थे ।ग्राहक भी महीनों की आवश्यकता की वस्तुएं मेले में खरीदते और घर ले जाते सूखे मेवे काजू, किशमिश ,बादाम ,अखरोट ,जिन्हे हम आज 200 ग्राम की मात्रा में खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाते किलों से क्रय किए जाते थे । क्यों कि इस मेले में लोगों की घर गृहस्थी की जरूरत का सामान लेकर दूर दराज के बड़े व्यापारी आते थे,

ग्वालियर व्यापार मेला मुख्यतः ग्वालियर क्षेत्र में कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए प्रारंभ किया गया था क्योंकि कृषि ही भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में इस क्षेत्र में अनेक मर्तबा सूखे और अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई इस स्थिति के स्थाई हल के सिंधिया राजघराने के मुखिया  माधौराव शिंदे ((सिंधिया) प्रथम ने राज्य में कृषि की स्थिति सुधारने और पशु पालन को बढ़ावा देने के निर्णय लिए तथा ग्वालियर मेले को इसका माध्यम बनाया ।

सन 1911 में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसे अभूतपूर्व सफलता मिली इसके बाद लगभग प्रतिवर्ष प्रदर्शनी लगने लगी और सागर ताल का  निकटवर्ती  मैदान मेले के लिए छोटा प्रतीत होने लगा। अतः नए स्थान की खोजबीन शुरू हुई तो इस मेले को कटोरा ताल और फिर 1918में वर्तमान स्थान का चयन किया गया क्योंकि यह स्थान लश्कर ग्वालियर और मुरार तीनों शहरों के मध्य में था ,

1918 से नए स्थान रेसकोर्स से लगी 104एकड भूमि पर ग्वालियर मेला भरना प्रारंभ हुआ उस साल एक अखिल भारतीय कृषि उद्योग प्रदर्शनी का भी आयोजन हुआ जिससे मेले में चार चांद लग गए इसके बाद से कृषि प्रदर्शनी तो मेले का अनिवार्य अंग बन गई तथा मेले में आने वाले सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र भी बन गई । समय के साथ सब कुछ बदलता है तो मेला भी बदला है वक्त के साथ वह हाईटेक हो गया है ग्वालियर मेला जो अपना शताब्दी समारोह मना चुका है ,

व्यक्ति की तरह इसे भी अपने 120 बर्ष के सफर के दौरान तमाम उतार-चढ़ाव देखने पड़े लेकिन हर स्थिति का सामना इसने बड़ी दिलेरी के साथ किया और मजबूती के साथ उभर कर सामने आया ,पशु मेले से लोहा पीटा और फिर चाट, झूलों से व्यापार तक का स्वरूप इस मेले ने देखा और पाया है। अब जब मेला अपनी स्थापना की 120 वी सीढ़ी पर कदम रख चुका है तो यह न सिर्फ ग्वालियर अपितु देश में लगने वाले अन्य मेलो के लिए एक मिसाल है ।     

मेले का भविष्य 

ग्वालियर मेले ने 1984 में माधव राव सिंधिया के रेल राज्य मंत्री बनाने के बाद काफी प्रगति की, उन्होंने इसे  ट्रेडफेयर का दर्ज दिलवाने से लेकर मेला परिसर में स्थाई शिल्प बाजार से लेकर फैसिलिटेशन की सौगात दिलाने में अहम भूमिका अदा की , उसके आकस्मिक निधन के बाद इसकी प्रगति पर पूर्ण विराम लग गया था , कभी-कभी तो यह महसूस होता है कि ग्वालियर मेले की प्रगति न केवल रुक गई है बल्कि प्रगति चक्र विपरीत दिशा में घूमने लगा । पूर्व ग्वालियर राज्य में और मध्य भारत राज्य में ग्वालियर मेला राज्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वार्षिक आयोजन होता थ

ग्वालियर रियासत के महाराज स्वयं मेले में आते थे और मेले में ही उनके मंत्रियों के कैंप लगते थे यहां तक कि जिले की सूबात और कचहरी के कैंप भी मेले में लगाए जाते थे माधव महाराज द्वारा शुरू की गई यह परंपरा मध्य भारत काल तक ही चली ।मेले के उद्घाटन और समापन के लिए केंद्रीय मंत्री आते थे। बाद में केंद्रीय मंत्रियों का आना बंद हो गया ग्वालियर राज्य का जब शेष भारत में वित्तीय सम्मेलन अथवा एकीकरण हुआ तभी सीमा शुल्क समाप्त हो गया और जो प्रोत्साहन मिलता था वह समाप्त हो गया किंतु मध्य भारत सरकार ने मेले में पर्याप्त दिलचस्पी ले कर मेले को न केवल जारी रखा बल्कि उसे और बड़ा किया । मध्य भारत में मेले में कृषि और पशु ग्रामोद्योग प्रदर्शनी या बड़े पैमाने पर लगने लगी किंतु मध्य प्रदेश सरकार के बनने के बाद राज्य सरकार का ध्यान इधर कम हो गया हालांकि जब माधवराव सिंधिया केंद्रीय मंत्री बने तो उन्होंने ग्वालियर के सर्वांगीण विकास के लिए दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया । उन्होंने ग्वालियर व्यापार मेले में व्यापार बढ़ाने के लिए अहम भूमिका अदा की मेले को और निखारने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के चुनिंदा लोगों से साथ लेकर व्यापार मेले के माध्यम से मेले को प्रमुख व्यापारिक केंद्र बनाने की शुरुआत की और परिवार के साथ आना शुरू किया। 1996 में ग्वालियर व्यापार मेला का प्राधिकरण गठन होने पर और माधवराव सिंधिया को अध्यक्ष बनाने के बाद मेला और तेजी से निखार आया। इसके फलस्वरूप ग्वालियर मेले के अच्छे दिन वापस लौटने लगे उसके योवन में निखार आने लगा था लेकिन 2000में उनके आकस्मिक निधन के बाद मेले का आयोजन औपचारिकता भर रह गया । और इस रस्म अदायगी के चलते मेले के प्रति लोगों का रुझान तेजी से घटने लगा था।

ग्वालियर के  मेले की रौनक लौटने की पहल ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहते ही कर दी थी। सिंधिया की दिलचस्पी का ही परिणाम है कि मेले के अच्छे दिन वापस लौटने लगे ।मेला उतना ही आकर्षक हो गया है जितना आकर्षक वह 1984-85 में हुआ करता था सिंधिया की पहल पर 11 वर्ष बाद पुनः लगना शुरू हुए ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिकने वाली गाड़ियों पर रोड टैक्स में मिली 50 प्रतिशत की छूट ने मेले की शोहरत न केवल प्रदेश में बल्कि अन्य शहरों में भी फैला दी है। हालांकि  1905में पशु मेले से शुरू होकर ट्रेड फेयर तक की यात्रा करने वाले 120साल पुराने ग्वालियर व्यापार मेले का इस बर्ष राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा शक्ति के अभाव के चलते  फरवरी माह का पहला सप्ताह गुजर जाने के बाबजूद औपचारिक उद्वघाटन तक नहीं हुआ है , यही वजह है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति का आलम यह है कि मेले की  बिना उद्वघाटन के शुरुआत होने के 41दिन बाद संभागीय आयुक्त मनोज खत्री ने  ए डी एम टी एन सिंह को मेला अधिकारी नियुक्त किया  है, यह भी सच है कि इस साल भी 

ग्वालियर व्यापार मेले में दुकानों के आवंटन में भी काफी बड़े पैमाने पर अनियमिताएं हुई इसकी व्यापारियों द्वारा शिकायत करने पर भी राजनीतिक दबाव के चलते किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई

लेकिन इस सबके बावजूद भी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव के बाद ग्वालियर व्यापार मेले के प्रारंभ होने के ठीक 21दिन पश्चात मेले से वाहन की खरीद पर रोड़ टैक्स में दी गई 50फीसदी छूट के चलते 20दिनो मे करोड रुपए के चार पहिया  वाहन बिक चुकें थे , गौरतलब बात है कि ग्वालियर व्यापार में औसतन मेले में प्रतिदिन 200से अधिक चार पहिया कारें और 250से अधिक दो पहिया वाहन बिक रहे हैं ग्वालियर मेला से महंगी कारें खरीदने में इन्दौर के लोग सबसे आगे रहे वहीं ग्वालियर दूसरे व भोपाल तीसरे नंबर पर रहे हैं,  नीमच, होशंगाबाद, जबलपुर, नरसिंहपुर, और सीधी तक के लोग मंहगी कारें खरीदकर ले गए हैं, गौरतलब है कि मेले के ऑटोमोबाइल सेक्टर से अबतक पांच दर्जन से अधिक बीएमडब्ल्यू,ई200,आड़ी , वोल्वो जैसे मंहगे चार पाहिया वाहन बिक चुके हैं 

विधिवत  समापन होने में  एक पखवाड़े का समय बचा है,इस बर्ष वाहनों की अच्छी-खासी बिक्री हुई है,महज 41दिनों में 1400करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हो चुका है इस साल भी ग्वालियर मेले से रेंज रोवर,मजिडीज, बीएमडब्ल्यू जैसी महंगी कारें खरीदने में इन्दौर, और भोपाल के लोग ने बाजी मारी है,इन दोनों ही प्रमुख शहरों के बाशिंदों ने 40 लाख से लेकर 2,69करोड रुपए तक की महंगी कारें यह से खरीदी है, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी विक्रम जीत सिंह कंग के अनुसार गुना, छिंदवाड़ा,धार, सागर तक के लोगों ने मेले से कार खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है 25फरवरी को मेला समाप्त होने तक यह कारोबार 1600करोड का आंकड़ा छू सकता है,  

हालांकि मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा 1 मार्च से उज्जैन में लगने वाले मेले में बिकने वाले वाहनों के रोड टैक्स में 50 प्रतिशत की छूट दिए जाने की घोषणा का असर दिखाई देने लगा है, मेले के अंतिम चरणों में वाहनों की बिक्री की रफ्तार कम हो गई है , ग्वालियर व्हीकल डीलर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष हरिकांत समाधियां और प्रेम मोटर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर चरणजीत नागपाल का कहना है कि 28फरवरी तक  आर टी ओ छूट की अवधि बढ़ा दी जाना चाहिए,पिछले वर्ष मेले का कुल कारोबार 1550 करोड़ रुपए हुआ था जिसमें 1350करोड का कारोबार अकेले आटोमोबाइल सेक्टर में हुआ था, जबकि 200करोड का कारोबार मेले के अन्य सेक्टरों में हुआ था, मेला प्राधिकरण के सचिव की आर रावत ने भरोसा जताया कि  पिछले साल के कारोबार का  रिकार्ड  इस बर्ष टूट जायेगा उधर ग्वालियर व्यापार मेला व्यापारी संघ के अध्यक्ष महेंद्र भदकारिया संयुक्त अध्यक्ष अनिल पुनियानी सचिवमहेश मुदगल ने केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री महेंद्र यादव प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर को पत्र लिखकर मांग की है कि मेले का समापन भव्यता के साथ किया जाए समापन  समारोह में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री, उधोग मंत्री प्रभारी मंत्री ,उर्जा मंत्री क्षेत्रीय सांसद मौजूद रहे 

कहना अतिशयोक्ति न होगा कि बीते सालों की अपेक्षा मेले ने इस साल ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट, ऊर्जा मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर के प्रयासों से व्यवसायिक प्रगति की जो रफ्तार पकड़ी है वह यदि आगे आने वाले सालों में इसी तरह कायम रही तो श्रीमंत माधवराव सिंधिया ग्वालियर व्यापार मेला अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायिक पटल पर भी अपनी एक पृथक पहचान कायम कर पाने में सफल रहेगा ।

( लेखक के विषय में मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं ) 



देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post