नागपुर में एक गरिमामय सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ
"झुककर मुझे पिलाओ पानी, बालकनी का मैं गमला हूं।"
साहित्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़कर सकारात्मकता और सौहार्द्र की स्थापना करता है - संजय अग्रवाल, भोपाल
साहित्य की अंतरराज्यीय गतिशीलता से हिंदी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाएं और संस्कृति समृद्ध होती है - गोकुल सोनी, भोपाल
भोपाल । फ्रेंड्स क्लब द्वारा "नेशनल अकादमी ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज" के मीटिंग प्वाइंट क्लब, नागपुर में एक गरिमामय सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन, भोपाल से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी के सम्मान में उनके मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन नेहा सोनी ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आयकर विभाग के ज्वाइंट कमिश्नर श्री संजय अग्रवाल (भोपाल) ने कहा कि "साहित्य मनुष्य को मनुष्य से जोड़कर, समाज में सौहार्द्र और सकारात्मकता का संचार करता है। गोष्ठी में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
अध्यक्ष श्री संजय अग्रवाल एवं मुख्य अतिथि श्री गोकुल सोनी का स्वागत जयप्रकाश रघुवंशी ने पुस्तक भेंट करके किया।
साकेतनगर से पधारे बैतूल जिले के कवि जयप्रकाश सूर्यवंशी सूर्यकिरण ने पढ़ा, "मरना तो निश्चित है, हर किसी को एक दिन, जीना कैसा, हर किसी को नहीं आता। भले ही चांद पर, पहुंच गए आज हम, जमीन पर कैसे चलना, हमें नहीं आता।।" नागपुर के कवि संदीप अग्रवाल ने नदी की व्यथा को अभिव्यक्त करते हुए पढ़ा, "कितना दुख है उर में संचित, किस सुख से हैं अब तक वंचित। किसे पता है व्यथा नदी की।" नागपुर के ही कवि राजेश आसुदानी "रकीब" ने पढ़ा, "बुझने की खातिर ही जला हूं, समझदार हूं या पगला हूं। झुककर मुझे पिलाओ पानी, बालकनी का मैं गमला हूं।" नागपुर के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं पत्रकार डॉ प्रवीण डबली ने व्यंग्य, "ट्यूशन शरणम्" और "नेताजी का चुनावी व्यायाम:भागदौड़" पढ़ा। कवि एवं मोटिवेशनल स्पीकर श्री राजेंद्र चांदौरकर ने पढ़ा, "भगवान की भाषा अगर मौन है, तो हम मौन हो जाएं। इसी तरह उससे संपर्क बनाएं।।" कवि बसंत पारदी ने पढ़ा, "याद तो उन्हें किया जाता है, जो दिल से भुला दिए जाते हैं। आपका मुकाम है इन पलकों पर, आप ही बस इस दिल में बसते हैं।"
मुख्य अतिथि श्री गोकुल सोनी ने अपने उद्बोधन में साहित्य की समृद्धि एवं गतिशीलता हेतु इसकी अंतरराज्यीय आवाजाही की आवश्यकता को निरूपित किया। उनके गीत, "शाम लगी जीवन की होने, रूप लगा है तिल तिल खोने। और कामनाओं के वन में भटक रहे सपने मृगछौने। ऐसे में हर आहट सोई आस जगाती है। कितना भूलूं याद तुम्हारी आ ही जाती है ।" को बहुत सराहना मिली।
स्वागत उद्बोधन डॉ प्रसाद शिवाल एवं आभार सौ. नंदा राजेश आसुदानी ने व्यक्त किया।
गोकुल सोनी, भोपाल
सुंदर रिपोर्टिंग हेतु आभार
ReplyDelete