काव्य :
पूर्णिकांशP
बनवाए जिन्होंने शीश महल
वे अब सड़क पर रहे हैं टहल
आम आदमी की दुआ में बल
कार बंगला नहीं अब हैं पैदल
कहते थे मुझे इस जन्म में
मेरे हैं ऐसे महानतम करम
मुझे नहीं कोई हरा सकता
बेबस लाचार बंधा है बसता
झूठ नहीं बोलता है, आईना
जरा जुंबां को मैया संभालना
नहीं तो पड़ता है पछताना
*कहें राम इंदौरी* गर्व न करना।
- राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी"
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