प्रा
ऋतुओं में वसंत-ऋतु सर्वश्रेष्ठ है। इसीलिए वसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है। इस ऋतु के प्रवेश करते ही सम्पूर्ण पृथ्वी वासंती आभा से खिल उठती है। वसंत ऋतु के आगमन पर वृक्षों से पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नये पत्ते आना प्रारंभ होते हैं। इस ऋतु के प्रारंभ होने पर शीत लहर धीरे-धीेरे कम होने लगती है तथा वातावरण में उष्णता का समावेश होता है। माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी को वसंत ऋतु का आरम्भ स्वीकार किया गया है और इसे महत्त्वपूर्ण पर्व की मान्यता दी गई है।
हिन्दू-धर्म में वसंत पंचमी का विशेष महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि इसी दिन माँ सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ। माता सरस्वती विद्या की देवी हैं। उनके पास आठ प्रकार की शक्तियाँ हैं -- ज्ञान, विज्ञान, विद्या, कला, बु
जिस प्रकार शास्त्रों में सृजन, पालन एवं संहार के प्रतीक त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मान्यता है ठीक उसी प्रकार बुद्धि, धन और शक्ति की प्रतीक सरस्वती, लक्ष्मी और काली के रूप में त्रिदेवियाँ भी स्वीकृत हैं। इनमें माता सरस्वती प्रथम स्थानीय हंै क्योंकि धनार्जन एवं रक्षार्थ शक्ति-नियोजन में भी बुद्धिरूपिणी सरस्वती की कृपा की विशेष आवश्यकता रहती है।
आचार्य व्याडि ने अपने प्रसिद्ध कोष में ‘श्री’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुये लिखा है कि ‘श्री’ शब्द अनेकार्थी है और लक्ष्मी, सरस्वती, बुद्धि, ऐश्
इससे स्पष्ट है कि माता सरस्वती बुद्धि, धन, सौन्दर्य, ऐश्वर्य एवं अनेक सिद्धियों से सम्पन्न देवी हैं। लोक में उन्हें अनेक नामों से जाना जाता है जैसे - भारती, ब्राह्मी, वाणी, गीर्दे
संपूर्ण विश्व का दैनन्दिन कार्य-व्यापार मनुष्य की वाणी पर ही निर्भर करता है। अतः इस संदर्भ में भी वाग्देवी भगवती सरस्वती की सत्ता सर्वोपरि है। महाकवि भवभूति ने ‘उत्तररामचरितम’ नाटक में मधुर वाणी को सरस्वती का स्वरूप बताया है। यह सत्य भी है क्योंकि यदि मनुष्य की वाणी मधुर होगी तो वह सामने वाले व्याक्ति को प्रभावित कर सकेगा, अपनी ओर आकर्षित कर लेगा और अपने कार्य-प्रयोजन में सफल होगा परन्तु यदि उसकी वाणी में मधुरता नहीं है तो वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकेगा। मनुष्य हो या पशु-पक्षी सभी को मधुर वाणी माता सरस्वती ही प्रदान करती हैं। इस प्रकार वही मनुष्य की सफलता का कारण हैं। अतः सर्वपूज्य भी हैं।
प्राचीन समय में ऋषि-मुनि सभी प्रकार के राग-द्वेष, ईष्र्या, लोभ, मोह-
भगवती सरस्वती के प्रादुर्भाव के विषय में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी संसार में चारों ओर देखते हैं तो उन्हें संसार में मूक मनुष्य ही दिखाई देते हैं, जो किसी से भी वार्तालाप नहीं करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी भी प्राणी में वाणी ही ना हों। यह सब देखकर ब्रह्मा जी अत्यंत दुखी हो जाते हैं। तत्पश्चात वे अपने कलश से जल लेकर छिड़कते हैं। वह जल वृक्षों पर जा गिरता है और एक शक्ति उत्पन्न होती है जो अपने हाथों से वीणा बजा रही होती है और वही बाद में सरस्वती माता का रूप लेकर संसार में पूजित होती है।
वेदों में सरस्वती नदी को भी वागदेवी का रूप माना गया है। लोक-विश्वास है कि इस नदी के सामने बैठकर सरस्वती माता की पूजा करने से उन की सीधी कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता का वाहन हंस है। माता के पास एक अमृतमय प्रकाशपुंज है जिससे वे निरंतर अपने भक्तों के लिए अक्षरों की ज्ञान-धारा प्रवाहित करती हैं।
पारम्परिक मान्यता है कि सरस्वती माता के उपासकों के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नियम भी होते हैं और इन नियमों का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए। इन नियमों का अनादर करने से माता कुंठित हो जाती हैं, जिसके परिणाम अत्यंत प्रलयंकारी हो सकते हैं।
विश्व के समस्त सद्ग्रन्थ भगवती सरस्वती के मूर्तिमान विग्रह हैं। अतःवेद, पुराण, रामायण, गीता सहित समस्त ज्ञानगर्भित ग्रंथों का आदर करना चाहिए। ऐसे सभी ग्रंथों को माता का स्वरूप मानते हुए अत्यंत पवित्र स्थान पर रखना चाहिए। इन ग्रंथों को अपवित्र अवस्था में स्पर्श नहीं करना चाहिए। अगर हम इन ग्रंथों को अपवित्र अवस्था में स्पर्श करते हैं तो माता हमसे रूष्ट हो सकती हैं। हमें कभी भी इन ग्रंथों को अनादर से पृथ्वी पर नहीं फेंकना चाहिए। इन ग्रंथों को सदैव अपने बैठने के आसन से कुछ ऊँचाई पर रखना चाहिए। प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर शुद्ध मन से माता का ध्यान करना चाहिए। ग्रहणकाल एवं अशुभ मुहूर्त में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है इसलिए हमें माता की आराधना करते समय श्वेत पुष्प, सफेद चन्दन, श्वेत वस्त्र आदि श्वेत पदार्थ अर्पित करना चाहिए। माता को प्रसन्न करने के लिए ‘‘ऊँ ऐं महा सरस्वत्यै नमः’’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। इससे माता सरस्वती प्रसन्न होती हैं।
माता उपासना करने मात्र से अपने भक्तों से परिचित हो जाती हैं और सदा अपने भक्त की रक्षा करती हैं। इसलिए वसंत पंचमी के दिन भारत के अधिकांश विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सरस्वती माता की उपासना के विशेष अनुष्ठान आयोजित होते हंै। इस प्रकार वसंत पंचमी सरस्वती पूजन का पर्यायरूप उत्सव है।