ad

आदिदेव महादेव और मंदिर का इतिहास - मुकेश तिवारी ,वरिष्ठ पत्रकार, ग्वालियर

 

आदिदेव महादेव और मंदिर का इतिहास 

- मुकेश तिवारी 

पौराणिक कथा के मुताबिक उक्त क्षेत्र में महासती का हृदय गिरा था ,उक्त हृदय पीठ पर विष्णु भगवान ने एक ग्वाले के भेष में रावण से लंका ले जाते  शिवलिंग का हरण कर यहां स्थापित किया ,यह स्थल हरलाजोरी के नाम से विख्यात  है तभी से यह स्थल द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध  है ,इस तथ्य की पुष्टि स्वयं आदि शंकराचार्य ने की है , पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में बैजू नामक एक भील भक्त पर प्रसन्नचित शिव स्वयं वैजुनाथ बाद में  वैजनाथ और अंत में वैधनाथ हो गए , तभी से देवघर का नाम वैधनाथधाम पड़ गया, शिव पुराण के   अनुसार अश्विनी कुमार की पूजा से शिवजी काफी प्रसन्न हुए थे और उन्होंने आयुर्वेद की सीख दी थी जिसके परिणाम स्वरुप रावणेश्वर महादेव वेधों के नाथ अर्थात वैधनाथ कहे जाने लगे, एक अन्य कवदंती के अनुसार मंदिर के पश्चिम में नाथ साधुओं का स्थान था, बे जड़ी बूटी एवं वैधकी में पारंगत थे और उनके आराध्य देव शिव जी थे, अतः एवं नाथ साधुओं ने अपने आराध्याय शिव जी के नाम पर वेधनाथ अर्थात वेधों के नाथ रखा तब से भगवान शिव और यह स्थान वैधनाथ के नाम से प्रसिद्ध है ,बैधनाथ की  देवघर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शिव  के अलावा अन्य देवी देवताओं का स्थल है,

        *स्थापक कला का अद्वितीय नमूना *

बैद्यनाथ मंदिर स्थापक कला की दृष्टि से हिंदुस्तान के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है वह ठोस पत्थरों से निर्मित है, मंदिर के मध्य भाग में शिव का भव्य और विशाल मंदिर है साथ ही साथ मंदिर परिसर में 21 अन्य मंदिर है एक घंटा ,एक चंद्रकूप  एवं मंदिर प्रांगण में प्रवेश हेतु एक विशाल सिंह द्वारा बना हुआ है,

      *  सिंह द्वार *

मंदिर का उत्तरी द्वार जो अगल-बगल दो प्रस्तुत सिंहों के कारण सिंह द्वार यह दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है,इसे पूणिया जिला अंतर्गत वतैली स्टेट के शिव भक्त राजा पद्मानंद सिंह ने विक्रम संवत 1963 कार्तिक पूर्णिमा के दिन बनवाया था, जनश्रुति है कि जो इस भग्नावशेष द्वार के निर्माण हेतु तैयार होता था उसे अनेक प्रकार के विध्न बाधाएं आती थी, अंत में राजा परमानंद सिंह ने विशेष पूजा पाठ कर 1963 में सिंह द्वारा का निर्माण कराया ,

      * मंदिर परिसर *

तकरीबन 125बर्ष पूर्व धर्म निष्ट श्री पन्नालाल ख्वाला गया निवासी ने मंदिर प्रांगण को शिलावस्थित किया,

      * चन्द्रकूप *

चन्द्रकूप एक पुराना और ऐतिहासिक कूप है जिसमें रावण द्वारा अनेक तीर्थो का जल छोड़ा गया है, यह मंदिर प्रांगण में सिंह दरवाजा के सामने स्थित है, चन्द्रकूप के पानी से जन्मों के पाप दूर होते हैं, नारदजी ने चन्द्रकूप के पानी से शंकर को स्नान कराया था यह बात कही जाती है, सरदार पंडा बंशज के स्व चन्द्रपानी ओझा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया,

          * बड़ा घंटा*

शिव मंदिर से दक्षिण संध्या और काल भैरव मंदिर के बीच प्रांगण में पीतल का एक बड़ा और मजबूत घंटा लटकता दिखायी पड़ता है, यह घंटा विक्रम संवत 1913

कार्तिक शुक्ल पूर्णमासी बुधवार को नेपाल के श्री पांच सरकार राजेन्द्र विक्रम महादेव ने अपनी पत्नी श्री साम्राज्य लक्ष्मी देवी तथा युवराज श्री सुरेन्द्र शाहदेव की मौजूदगी में नित्य नैमति पूजा हेतु प्रदान किया,

      *  मंदिर का इतिहास शिव मंदिर *

वैधनाथ मंदिर समूह के मध्य प्रांगण में बना शिव का भव्य और विशाल मंदिर कब और किसने बनवाया यह शोध का विषय है, लोगों का कहना है कि यह मंदिर के देव शिल्पी विश्वकर्मा ने बनवाया क्योंकि पुराणों में ऐसा उल्लेख आया है कि रावण के चले जाते के बाद विष्णु भगवान वैधनाथ दर्शन हेतु  हद्वय पीठ पधारे और शिव की षोडशोपचार पूजा एवं वेदान्त सग्गमित स्तुति की ,तदनंतर शिव का आदेश हुआ कि आप मेरा एक सुंदर मंदिर निर्माण करें कारण मेरे मंदिर के निर्माण में आपके शिवा किसी दूसरे की शक्ति नहीं है, नारायण ने शीघ्र ही देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा शिव मंदिर का निर्माण करवाया, शिव मंदिर का निर्माण काल को लेकर इतिहासकार एवं विशेषज्ञों में भारी मतभेद हैं, हालांकि  कुछ इसे गुप्त कालीन मानते हैं, इतिहासकारों एवं पुरातत्व वेत्ताओं का मानना है कि रावणेश्वर मंदिर का निर्माण देशी स्थापक कला पर आधारित है और इसका निर्माण ही उड़ीसा शैली से मिलती जुलती है मंदिर का स्थापक शैली एवं परकोटे के निर्माण से यह प्रतीत होता है कि इस मंदिर का निर्माण का प्रारंभ आदिकाल से हुआ था और मंदिर का दूसरा भाग जिसे मंझला खंड कहा जाता है का निर्माण गुप्तकाल में हुआ और तीसरे खंड का निर्माण 1600ई के आस-पास हुआ, तीसरे खंड व परकोटे के निर्माण में गीघौर राजा का नाम उल्लेखनीय हैं, इतिहासकारो की मान्यता है कि पुराणों काल का 300ई पूर्व एवं 1900ई के बीच माना गया है, संभव है कि मंदिर का निर्माण इसी बीच हुआ़ हो , मंदिर के पूरब दरवाजे पर एक शिलालेख मैथिली भाषा में है इसमें मंदार पर्वत का जिक्र आता है और मंदार पर्वत स्थित शिलालेख में राजा आदित्य सेन का उल्लेख आया है, इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि मंदिर का निर्माण छठी सदी के आसपास ही हुआ,

     *  पार्वती मंदिर *

सर्वशक्तिमान मां पार्वती का मंदिर प्रांगण के मध्य शिव मंदिर के सामने पूरब दिशा की और स्थित है, मंदिर सर्वाधिक ऊंचे चबूतरे पर स्थित सुंदर एवं कलात्मक है, भीतर पार्वती और दुर्गा मां की दो सुंदर प्रतिमाएं हैं , प्रतिमा प्राचीनकाल की प्रतीत होती है, मंदिर की छत स्पष्टतः दो बार में बनी है, पहली छत अपेक्षाकृत छोटी और गोल है जिस पर दूसरी छत गुम्बज के रूप में उठाई गयी है,  पार्वती मंदिर का दरवाजा पीतल से निर्मित है जिसे पंजियारा  स्टेट के शिव भक्त जमीदार शालिग्राम सिंह ने वैशाख सदी 13संवत  1889 को प्रदान किया , पार्वती मंदिर का गुंबद काफी कलात्मक व दीवारों पर अनेक प्रकार के फूल और नकशे चित्रित है मंदिर की ऊंचाई देखकर अभास होता है कि शिव ने शक्ति का स्थान अपने से ऊपर दिया है

      *जगत जननी मंदिर* 

पार्वती मंदिर से दक्षिण जगदंबा माता मां जगदंबा जननी देवाराधना मुद्रा में ध्यानावस्थित है समूचा मंदिर प्रशाल की भांति विस्तृत है, दाहिनी और अन्य मूर्तियों है, 

         *गणेश मंदिर*

मां जगत जननी के समीप ही श्री गणेश अष्ट भुजा और नृत्य मुद्रा में है, विध्न विनाशक मूर्ति अत्यंत मनोहारी खड्ग,शंख,चक्र, लड्डू इत्यादि है, मूर्ति के चतुर्दिक सुन्दर चित्रकारियां उदर बढ़े हुए और जनेऊधारी है,

          *मनसा मंदिर*

मनसा देवी की एक छोटी मनोहरी मूर्ति प्रतिस्थापित है मूर्ति पद्मासन मुद्रा में है दोनों हाथों में सर्प है लोगों का ऐसा कहना है कि उक्त मंदिर का निर्माण शैलजानंद ओझा ने करवाया था ,

    लेखक के विषय में - मध्यप्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं 

ई मेल -tiwarimk2014@gmail.com 

मोबाइल नंबर 8878172777

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post