काव्य :
बसंत,,,,तेरी ही छवि बरसों देखी
है मेरे मन की, हरियाली तू
है ,लदी फूल की डाली तू
है ,छम छम बजती पायल तू
पल पल करती ,मन घायल तू
पीली फूली सरसों देखी
तेरी ही छवि बरसों देखी
आम की बौर सनी, बयार है
खुशबू है तू, मेरा प्यार है
रंग फूलों में हैं वो,तुझसे हैं
कोयल की कू कू, तुझ से है
पीली फूली सरसों देखी
तेरी ही छवि बरसों देखी
तू मादक है,मोहित करती
मधु मे मिठास, तू ही भरती
तू ऋतुराज है ,तू बसन्त है
तुझसे ,न खुशियों का अंत है
पीली फूली सरसों देखी
तेरी ही छवि बरसों देखी
तू मौसम की अंगड़ाई है
तुझसे मिटती, तन्हाई है
तू जीवन नाड़ी है, धड़कन है
बगिया फूलों की, उपवन है
पीली फूली सरसों देखी
*ब्रज* तेरी ही छवि बरसों देखी
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल
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