ad

काव्य : मछलियाॅं बेचैन होकर सो गईं -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट,बरेली


 काव्य : 

मछलियाॅं बेचैन होकर सो गईं 

गीत


आज जहरीला हुआ अपने यहाॅं का

ताल 

मछलियाॅं बेचैन होकर सो गईं।

 

स्वार्थी संबंध से पैदा हुई दुर्गंध

टूटकर बिखरे यहाॅं जो भी किए अनुबंध

जो हुआ बदहाल उससे कौन पूछे हाल

लग रहा संवेदनाऍं खो गईं।

 

दे रही कुंठा जिसे भी अब यहाॅं भटकाव

है नहीं मिलता कभी उसको कहीं सद्भाव

और मृगतृष्णा बनी उसके लिए तो काल

नफरतें भी बीज अपना बो गईं।

 

चल रहा है तिकड़मों का आज ऐसा दौर

इसलिए लोमड़ बना सबका यहाॅं सिरमौर 

कर रहे हैं मौज- मस्ती खूब उसके लाल 

और गधियाॅं पाप उनके ढो गईं।


कामनाओं ने भरा खुद माॅंग में सिंदूर

वासना के सामने अरमान चकनाचूर

लुट गया सम्मान जिसका हो गया कंगाल

आस्थाऍं हाथ अपने धो गईं।


अब नए परिवेश में कब योग्यता की बात

गिरगिटों की कूटनीतिक चाल देती मात

भेड़ियों ने खूब फैलाया यहाॅं पर जाल

और मानव की व्यथाऍं रो गईं। 


उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

 'कुमुद- निवास' 

बरेली (उत्तर प्रदेश)

 मोबा. 9837944187

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post