किताबों की दुनिया :
सकारात्मक बदलाव, प्रेम, विश्वास, देशप्रेम, चातुर्य, धोखाधड़ी, रिश्तों के उतार चढावों को दर्शाता है लघुकथा संग्रह - 'जीवन है तो संघर्ष है'
ले. डॉ. रमेश यादव
कथा विधा का परिचय प्राचीन संस्कृत साहित्य में हमें मिलता है। ‘पंचतंत्र’, ‘हितोपदेश’ कथा साहित्य में उपदेश, चातुर्य, जीवन बोध देना इन तत्वों का संगम दिखाई देता है। मतलब मूलतः इनका उद्देश्य नीति,उपदेश से समाज व्यवस्था को स्वस्थ रखना था। वैश्विक साहित्य के इतिहास में भी कथा विधा का अस्तित्व प्राचीन समय से मजबूती से बंधा है।
फिर भी ‘लघुकथा’ की इस विधा की कौनसी विशेषता है, जो आज कथा से हटकर लघुकथा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व दिखाई दे रहा है। तो इसलिए हमें इंग्लिश लिटरेचर को भी देखना चाहिए।इंग्लिश साहित्य में Short Story लिखी जाती है। वैसे भारतीय साहित्य पर इंग्लिश साहित्य की अन्य विधाओं का प्रभाव तो है। जैसे Novel से उपन्यास। तो Short Story से लघुकथा। लघुकथा मे एक ही घटना या प्रसंग होता है। जिसका प्रभावी ढंग से लेखक विस्तार करता है। यह लघुकथा हमारे आसपास के घटनाओं से तो कभी वैश्विक घटनाओं से जुड़ी होती है। हर विधा का रचनाकार अपनी चयनित विधा की विशेषता स्वयं स्पष्ट करता है। पाठक, समीक्षक तथा शोधकर्ता इसपर अधिक चर्चा करते हैं। इस लघुकथा संग्रह को पढ़कर इस बात को रखना जरुरी लगता है।
डॉ. रमेश यादव जी का ‘जीवन है तो संघर्ष है’ इक्यावन लघुकथाओं का यह संग्रह है।जो निश्चित ही हमारे जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाओं का दर्शन लगता है। हर लघुकथा में एक प्रसंग है।इस संग्रह की शीर्षक लघुकथा ‘जीवन है तो संघर्ष है’ जिसमें अपना अस्तित्व,अपनी पहचान के लिए संघर्ष का तानाबाना जोड़ा है। इस लघुकथा का रूप लोककथाओं की याद दिलाता है। सांप यदि फुफकारना छोड़ दें तो उसका अस्तित्व ही ख़त्म हो जायेगा। मनुष्य को भी अपने अस्तित्व और गरिमा को बनाए रखने के लिए सजग रहना चाहिए। अनायास ही इस बात पर गौर करने का मन तो जरूर हो सकता है।‘गठरियां मे लागा चोर..।यह भी लोककथाओं की शैली,परंपरा और भाषा की याद दिलाती है। चोरों की नज़र समझना एक कला है। जो हर समय में समझनी चाहिए। इन दोनों कहानियों पर उत्तर भारत के संस्कृति,बोली और लहजों का आवरण है।जो सहजता से चातुर्य और बोध कथाओं के समीप जाती है।
लोक जीवन मे परंपरा और समय, स्थान का महत्व होता है। यही पृष्ठभूमि ‘गऊदान’ लघुकथा की है।यह लघुकथा आस्था और लालच का दर्पण है। धर्म और पाप - पुण्य के बीच का रखवाला लालच से आस्था का दीप नष्ट करता है। ऐसी घटनाओं पर लिखना आज के समय में बहुत नाजुक मसला बन गया है। लेखक की हिम्मत सराहनीय है। लेखक लघुकथाओं के शीर्षक भी प्रासंगिक पौराणिक पात्रों से लेते हैं।‘मंथरा-मंत्र का दहन’ जैसे शीर्षक स्त्री स्वभाव की विविधता बडे ही मार्मिकता से व्यक्त करते हैं।सभी लघुकथाओं में आज का वास्तव है। ‘रेस’ जैसी लघुकथा बालकों के अंतर्मन का दर्पण है। मंथन अपने मित्र से कहता है,”नहीं मित्र, अंधी रेस के इस दौर में गुमराह हुए अपनी मम्मी-पापा की आंखें खोलने का प्रयास कर रहा था।अब मैं वही करूंगा जो मुझे अच्छा लगता है” (पृ.49)
इन लघुकथाओं में एक ही प्रसंग होता है, जिसकी बुनाई रोचक शैली में की है। कभी कभी सहजता से बोध देनेवाले प्रसंग जिनको हम पाठक भी अनुभव कर चुके होते हैं। लेकिन इनको लिखना और पाठकों के मन पर उन प्रसंगों का छाप छोड़ने का लालित्य लेखक की अपनी कला होती हैं। जो यहां पढ़ते हुए स्पष्ट होती है।
कुछ लघुकथाओं में दो भाग है। जैसे कोख का सौदा भाग1 और भाग 2
यह लघुकथा स्त्री विमर्श का एक कतरा है।पहले भाग में सास और पति बिना बताये बहू की कोख से जन्मे बच्चों को बेचते हैं।भाग 2 में बहू खुद अपने कोख का सौदा कर अपनी जरूरत पूरी करती है। सरोगेसी से जुड़ी इन लघुकथाओं मे रिश्तों का स्वार्थ उजागर किया गया है।
लक्ष्य -1 मे उज्जवल के माता पिता उसके मैदान में जाकर खेलने पर सकारात्मक चर्चा करते हैं। जो उज्जवल को लक्ष्य देती है। भाग 2 मे पिताजी समीर को क्रिकेट मे अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए लक्ष्य पर जोर देने की सलाह देते हैं।दोनों भागों में बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए खेल का मैदान कितना जरूरी है और जीवन मे लक्ष्य हासिल करने के लिए संघर्ष जरूरी है, इस पर ध्यान दिया है। दो भागों में लिखी गई इन लघुकथाओं की पृष्ठभूमि पहले भाग में आती है। तो दूसरे भाग में पात्रों का निर्णय। लेखक की कल्पना पर पात्रों का प्रभाव हावी हो जाता है।जो परिस्थितियों का परिणाम है। पहले भाग से दूसरे को जोड़ना यह लेखक और पात्रों का निर्णय ही कहलाएगा।लेकिन यह पहल भी अच्छी लगती है। यह लघुकथा का विस्तार ही है।
कुल मिलाकर लेखक स्वयं इस बात को प्रकट करते हैं कि लघुकथा कैसा प्रभाव करती है, कवि बिहारी जी के शब्दों में कहे तो- देखन में छोटे लगै, घाव करे गम्भीर (पृ.10)
इन लघुकथाओं की विशेषता यह भी है कि हम सब इनमें प्रतिबिंबित होनेवाले समाज, बदलाव, महानगरों की आपाधापी से परिचित हैं। इन्हीं प्रसंगों को लेखक लघुकथाओं के माध्यम से पाठकों को पुनः परिचित करवाते हैं। इस संग्रह में लघुकथाओं से जुड़े संदीप राशिनकर के रेखाचित्र विषय की गंभीरता को उभारते है।
सकारात्मक बदलाव, प्रेम, विश्वास, देशप्रेम, चातुर्य, धोखाघड़ी, रिश्तों के उतार चढावों जैसे विषयों को लेकर आधुनिक दृष्टिकोण से लघुकथाओं का लेखन आज के समय की मांग है। इस मुद्दे पर लेखक सच्चाई की कसौटी पर खरे उतरते है। पाठकों के लिए हर लघुकथा को पढना अपने जीवन को नजदीकी से देखने का अनुभव होगा, इसी विश्वास से डॉ. रमेश यादव जी को साधुवाद!
द्वारा - लतिका जाधव, पुणे (महाराष्ट्र)
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जीवन है तो संघर्ष है (लघुकथा संग्रह)
लेखक – डॉ. रमेश यादव
प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स, प्रायवेट लिमिटेड, नोएड़ा -201301
पृ.सं.111, मूल्य- 200/-
संपादक, श्री. देवेंद्र भाई सोनी जी,
ReplyDeleteआलेख प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
होली पर्व की सबको शुभकामनाएँ!💐💐