ad

पुस्तक चर्चा : बहुरंगी काव्यकलश' (दोहा संग्रह) , चर्चाकार - रामनारायण सोनी, इंदौर


 पुस्तक चर्चा :-

पुस्तक का नाम :-'बहुरंगी काव्यकलश'  (दोहा संग्रह)

कवि :- श्री रशीद एहमद शेख 'रशीद'

ISBN - 978-93- 49081-12-3

प्रकाशक :- श्री विनायक प्रकाशन, इन्दौर


           चूँकि पुस्तक एक दोहा संग्रह है। यद्यपि दोहे से सभी लोग परिचित हैं फिर भी इस पुस्तक के अन्तःप्रवेश के पूर्व हम दोहा छन्द के विषय में एक संक्षिप्त चर्चा कर लेते हैं।

दोहा मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं जिसमें दो पंक्तियों (चार चरणों) के जोड़े होते हैं, जहाँ पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13 मात्राएँ और दूसरे व चौथे (सम) चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। यह अपने आप में स्वतंत्र रूप से एक पूरा विचार व्यक्त करने में सक्षम होता है। विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए। इसके अन्त में लघु होता है। तुक सम पादों की मिलती है।

दोहे की मुख्य विशेषताएँ: दोहा मात्रिक छंद है,  इसलिए इसकी रचना के समय मात्राओं की ध्यान रखना महत्वपूर्ण है, 

यति (विराम): प्रत्येक पद में 13 और 11 मात्राओं पर यति (विराम) होता है, जिससे पढ़ने में लयात्मकता तथा आसानी होती है। 

2. दूसरे और चौथे (सम) चरण के अंत में तुक मिलना आवश्यक होता है।

3. संक्षिप्तता और अर्थपूर्णता:- दोहा कम शब्दों में गहरी बात, सीख या दर्शन प्रस्तुत करता है, जो इसे बहुत लोकप्रिय बनाता है।

4. अंत में लघु: सम चरणों के अंत में लघु (।) वर्ण का प्रयोग होता है। 

5. यह दो पंक्तियों का एक छोटा सा छंद है जिसके कारण यह याद रखने योग्य है।

6. इसमें नैतिक शिक्षाएँ, आध्यात्मिक ज्ञान, प्रेम, भक्ति और जीवन के अनुभव शामिल होते हैं।

लोकप्रियता: इसे संत कबीर, रहीम, तुलसीदास (रामचरितमानस) और मीराबाई जैसे कवियों ने लोकप्रिय बनाया।

इन्दौर शहर में दो ऐसे नाम हैं - एक श्री प्रभु त्रिवेदी और दूसरे श्री रशीद एहमद शेख जो राष्ट्रीय स्तर पर ‘स्तरीय दोहाकार' के रूप में अपनी पहचान बनाये हुये हैं।

प्रस्तुत कृति के कृतिकार के पूर्व प्रकाशित ग्रंथ और प्रचुर प्रकीर्ण साहित्य को पढ़ने से पूर्व और विभिन्न संभ्रान्त मंचों पर इनका काव्यपाठ सुनने पर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं होता है कि वे रसखान, रहीम, जायसी की भक्ति और रीति परम्परा के कवि हैं। उनकी गज़लें सरल बोधगम्य उर्दू अदब की बेमिसाल रचनाएँ होती हैं। इनके चित्राधारित गीत - गज़ल बहुत प्रभावी और संवेदनात्मक होती हैं। हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार है। इनकी हिन्दी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रचुरता है। इनका संपूर्ण साहित्य मात्रिक छन्दों से भरा पड़ा है, वे व्याकरण और मीटर में अनुशासित रूप से बद्ध हैं और इसीलिये वे रचनाएँ लयात्मक हैं, गेय हैं। मंचों, गोष्ठियों में हमने उनकी बुलन्द आवाज़ में प्रस्तुतिकरण देखा सुना है। उनकी शिक्षा-दीक्षा और जीवन्त अनुभवों की छाप उनके साहित्य में स्पष्ट झलकती है। इनके पदों में बौद्धिक और सामाजिक समरसता का गहरा प्रभाव लक्षित होता है। समग्रता में देखा जाय तो उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अनुकरणीय है। मैं जो जो बातें यहाँ उल्लिखित कर रहा हूँ वे सब आपको प्रस्तुत कृति बहुरंगी काव्यकलश को पढ़ने के समय महसूस हो जावेगी, यह मेरी साधिकार उद्घोषणा है।

पुस्तक 'बहुरंगी काव्यकलश' के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसमें साहित्य के इंद्रधनुषी बहुरंग होंगे, इस सहज- सरस काव्य से लबरेज कलश को हम मंगल कल ही कहेंगे क्योंकि यह परमेश की प्रार्थना से प्रारम्भ होता है और इस पुस्तक का अन्तिम दोहा भी परमेश से पूर्ण होता है। इस तरह पूर्णता में देखा जाय तो यह कृति एक ऐसे क्षितिज का निर्माण करती है जो सृष्टिकर्ता और उसकी सृष्टि के विभिन्न आयाम, मानवीय संवेदनाओं, नैतिक, सामाजिक, पारिवारिक और रोजमर्रा की जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभवों का सूक्ष्म विवेचन मिल जावेगा।

    लेखक ने मन की बात में स्पष्ट किया है कि स्वाध्याय और अनुशीलन के कारण बाल्यकाल से ही उनमें वे बीज पड़े जो कालान्तर में प्रस्फुटित और पल्लवित हुए हैं। अनुक्रमणिका बहुत सजगता से बनाई गई है जिसके प्रथम भाग में सन्निविष्ठ विषयों का उल्लेख है जिसके कारण पुस्तक के कन्टेन्ट का पूर्वाभास हो जाता है जो पाठक का मनोयोग तैयार करता है।  उपरान्त में क्रमवार दोहे हैं जिन्हें पढ़ कर लगने लगता है कि जैसे वे अनुप्रास अलंकार से अलंकृत है।

प्रारंभ में ही परमेश्वर, राम, शिव, शक्ति के भक्ति और अध्यात्म से ओत प्रोत दोहे हैं जो इस ग्रंथ के आरम्भ को पावन बनाते हैं। शताधिक शीर्षकों, मनोयोगों, उद्वेलनो, साखियों से वर्णित और आलंकारिक विविधाओं सज्जित पुस्तक को ज्यों ज्यों पढ़ते हैं मन आनन्दातिरेक से भर जाता है इसलिये ये सब मिलकर पुस्तक को पठनीय एवं संग्रहणीय बना देते हैं।

मैं इनकी पर्सनल लायब्रेरी में इनकी कई हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ देख चुका हूँ और आशान्वित हूँ कि वे शीघ्र प्रकाशित हो कर हिन्दी, उर्दू साहित्य को समृद्ध करें। मैं श्री रशीद अहमद शेख 'रशीद' उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।

रामनारायण सोनी, इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post