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∆ विशेष आलेख बढ़ते मोबाइल प्रचलन से मानसिक और नैतिक मूल्यों में गिरावट...- विमलचंद्र जैन "मच्छीरक्षक"


 ∆ विशेष आलेख 

बढ़ते मोबाइल प्रचलन से मानसिक और नैतिक मूल्यों में गिरावट...- 

  - विमलचंद्र जैन "मच्छीरक्षक"

प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर 

     मोबाइल वर्तमान में पहली आवश्यकता बन गया है कोई वर्ग अछूता नहीं है , निश्चित संपर्क और संवाद का बेहतर माध्यम भी है मोबाइल । इसके लाभकारी परिणाम हैं पर अब समाज में इसके दुष्प्रभाव भी बड़ी तेजी से आकार लेरहे हैं और सामाजिक तानेबाने को भी प्रभावित कर रहे हैं यह चिंता की बात है ।

मोबाइल ने आज हमारी संस्कृति व परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। मानव सभ्यता पर अपना अस्तित्व स्थापित कर लिया। बिन मोबाइल सब सुना सुना। मोबाइल ने बालपन से युवा होने तक के सफर को अपना गुलाम बना दिया। बच्चे और युवा जैसे मोबाइल एडिक्ट होते जारहे हैं , परिणाम सभ्य आचरण, धार्मिक भावनाओं, संस्कार के मूल आदर्श विचारो को समाज में धराशाही कर दिया, शून्य कर दिया। माना कि आवश्यक कार्यों की पूर्ति के लिए आज मोबाइल बेहद जरूरी। इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए इसमें अच्छाई भी है और बुराई भी है। इसे बच्चों से दूर रखने का प्रयास होना चाहिए, जो आवश्यक है। यह बच्चों का खिलौना नहीं है। फिर भी हमने बच्चों को बहलाने फुसलाने के लिए छोटी उम्र से ही हाथों में स्मार्ट मोबाइल फोन थमा दिया। बच्चा लगातार घंटों तक मोबाइल फोन से अपने को बहला रहा होता है। यह मोबाइल मां का प्यार, पिता का आशीर्वाद बन गया। फलों, फूलों और मोबाइल देखो बच्चों के हाथों में मोबाइल देकर माता-पिता गर्व महसूस कर रहे। क्या हम बच्चों को धर्म, परिवार, समाज व राष्ट्र की मजबूत नीव का सारथी बना रहे हैं ? हमारे संस्कार कहां विलुप्त हो गए। यह हमारी चतुराई हमें कौन सा इनाम देगी, हमारे भविष्य को सुखद बनाएंगी या लाचार ? इससे सामाजिक, धार्मिक व मानसिक स्वास्थ्य पर हो रहे खिलवाड़ का जवाबदार कौन ? कभी गम्भीरता से विचार किया है। लगता है हम गंभीर नहीं। बच्चों को मोबाइल की आदत डाल कर स्वछंदता का गुलाम बना रहे, संस्कार विहीन बना रहे हैं। बच्चों में मोबाइल के नकारात्मक प्रभाव को देखा जा सकता है। क्या नैतिकता व संस्कारों से अनभिज्ञ युवा, परिवार, समाज व राष्ट्र के भविष्य का निर्माण कर पाएंगे ? जो हमारे लालन-पालन जीवन रेखा की लापरवाह कमजोर नींव पर खड़े हैं। हमारे विचार कार्यकारी व अर्थ बिपाशा स्वार्थ ने बच्चों के जीवन को गुमराह कर दिया। उन्हें आई के हवाले कर दिया आपसी पारिवारिक संबंधों में दूरियां बढ़ती जा रही है। नई पीढ़ी में संचार का यह साधन लापरवाही के कारण बुराइयों को जन्म दे रहा है। बच्चों का छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ना, मोबाइल की जिद करना, गुस्सा करना चिल्लाना, बिना मोबाइल खाना नहीं खाना, छोटी-छोटी बातों पर दोस्तों के साथ झगड़ा करना, मोबाइल नहीं देने पर बच्चे आत्मा हत्या जैसा जधन्य कांड तक कर बैठते हैं। क्योंकि बच्चे मोबाइल पर गेम, मार - काट, अश्लीलता जैसे दृश्य वीडियो पर देख उनका मानसिक विकास बाधित हो रहा है। तनाव में जी रहे होते हैं। शरीर पर पढ़ते दुष्प्रभाव-- जैसे आंखों पर, व्यवहार पर, विचारों पर, दैनिक जीवन की कार्य क्षमता आक्रामक हो रही है। जीवन पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है। यह माता-पिता का बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान नहीं देना उन्हें नहीं पता कि बच्चे फोन में क्या-क्या देखते हैं, क्या सीख रहे हैं ? क्या गलत और क्या सही, बच्चे तो नादान होते हैं उन्हें इसका ज्ञान नहीं होता। क्योंकि हमने उन्हें नैतिकता धर्म व संस्कार के ज्ञान से शिक्षित ही नहीं किया। मां की ममता व प्यार का सहारा हमने मोबाइल व टीवी को बना दिया ऐसे में माता-पिता के सहारे समाज के सारथी जैसे आदर्श गुणों से अनभिज्ञ युवा अपनी जिम्मेदारियां को कैसे निभा पायेंगे ?   भविष्य कैसे उज्जवल होगा बच्चों के प्रति हमारी लापरवाही  नुकसान पहुंचा रही , परिणाम बच्चों में झूठ चोरी, अश्लीलता अपहरण एवं अनैतिक आचरण पर सोचना, करना उनके लिए सुविधाजनक आसान कार्य हो गया है। धीमे जहर की तरह बच्चों की सेहत व जीवन पर बुरा प्रभाव डाल रही है। दुर्भाग्य हमने बच्चों के जीवन को ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया की श्रेष्ठ विचार शून्य हो गए। बच्चे विपरीत आचरण की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में परिणाम तो समस्याएं लेकर ही सामने खड़े हैं। "अपने ही पैरों पर हम कुल्हाड़ी मार रहे हैं"। जवाबदार भी हम ही हैं। जब माता-पिता घर परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने हाथों में मोबाइल लेकर घंटे उसका उपयोगी अनुपयोगी इस्तेमाल करते हैं कोई किसी से बात करने को तैयार नहीं है तो इसका प्रभाव भी बच्चों पर पड़ेगा ही। उसकी मानसिकता भी प्रभावित होगी 

        बच्चों के माता पिता और अभिभावकों से आग्रह है कि बच्चों को मोबाइल के हानिकारक प्रभावों के बारे में बताएं , उन्हें समय दें, उनसे अच्छे से बात करें। महापुरुषों की कहानीयां, कविताएं, नैतिक व्यवहार की बातें सीखाएं, धर्म से जोड़ें ताकि उनके व्यवहारिक जीवन में बदलाव आ सके। उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छे से हो सके साथ ही आपका भविष्य सुरक्षित हो सके। समाज की प्रतिष्ठा बढ़े व राष्ट्र का गौरव बढ़े।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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