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सुवासित समिधाएं काव्यसंग्रह का लोकार्पण हुआ


 सुवासित समिधाएं काव्यसंग्रह का लोकार्पण हुआ

इंदौर । वामा साहित्य मंच के बैनर तले डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज के प्रथम काव्य संग्रह का लोकार्पण श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति में किया गया। डॉ. सोनाली नरगुंदे के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता जूही भार्गव ने की। इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. सोनाली नरगुंदे ने कहा कि रचनाकार छोटी उम्र में कविता लिखना शुरू कर देता है कुछ और बड़ा होने पर रचनाएं पढ़ना शुरू कर देता है और उम्रदराज़ होने पर कविता समझना आरंभ करता है। उन्होंने कहा कि लेखिका ने हर कविता में बहुत कहा है उनके शब्दों में कविता झरने सी बहती है लेकिन फिर भी वे कुछ छुपा जाती हैं, जो बाहर नहीं आ पाता। उनकी कविताओं में दर्शन की गहरी छाप है जो शब्द संपदा की धरोहर के रूप में पाठक के सामने सदा मौजूद रहेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्ष जूही भार्गव ने लेखिका की रचनाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें सोशल मीडिया पर संप्रेषित करने पर बल दिया जिससे युवा पीढ़ी भी उनके लेखन को आत्मसात कर सके ।


पुस्तक की चर्चाकार ज्योति जैन ने कहा कि कहने को तो कवयित्री का यह पहला काव्य संग्रह है लेकिन उनकी रचनाएं बहुत ही परिपक्व हैं। मैंने महसूस किया कि कागज़ पर भले ही कविताएं अभी उतरीं हों पर उनके मन मस्तिष्क में ये बरसों से पक रहीं होंगी। जब हम यज्ञ करने बैठते हैं और उसमें समिधा डालते हैं तो जो पवित्र सुगंध चारों ओर फैलती है वैसी ही रचनाएं हैं डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज की सुवासित समिधाएं में। 


ज्योति जैन ने कुछ कविताओं की बानगी दी जिनमें रचनाकार की संवेदनशीलता मुखर हुई है। वे सन्यासी कविता में कहती हैं…’ प्रस्तर मूर्ति की आंख से, देख रहे हैं मंदिर के देव/ और घाट पर खड़े घबराए लोग उसे/ भगवे वस्त्र से बहता/ गाढ़ा लाल रक्त / नदी के पानी में घुलने के साथ/ सबकी आंखों में उतरता जा रहा है....। ‘नया साल कविता में अपने खूबसूरत भाव पाठकों के सामने रखें हैं' तो जो भी उजास, खुशियां, स्नेह और/ आशीष समेट जाओ/अपनी झोली में/ वह लौटती बेर/ हर हथेली पर बांटते आना/ प्रसाद की तरह। लॉक डॉउन कविता में लेखिका ने उस दौर के विभिन्न आयामों और डर को व्यक्त किया है - ‘गिलहरी को छूने का डर, क्योंकि वह चौखट पर है/ सब्जी की टोकरी को छूने का डर/ रंगीन गेंद और घंटी वाली साईकिल को छूने का डर... 

कवयित्री का वाक्य विन्यास अद्भुत है, उन्होंने कई नए शब्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है जैसे कतरब्यौत, पछीटना, लसलसाती, लोथी, गन्नाहट आदि। जो रचनाओं को उत्कृष्टता प्रदान करता है बहुत सारी विलक्षण, गहन और गंभीर रचनाएं सचमुच सुवासित समिधाओं की तरह पाठकों की हर श्वास के साथ अंतस तक पहुंचेंगी। 

डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कहा कि मेरे मानस पर आसपास के जीवन की पीड़ा सामाजिक अव्यवस्था या भेदभाव, शिक्षक, पाठशाला, श्याम पट्ट, ककहरे का प्रभाव रहा और उन्हीं से जुडा़ स्वर कविताओं में बार बार उभरा। विविध रंगी मेरी कविताएं जीवन यात्रा की सोच की, दर्शन की सुवासित समिधाओं की तरह जीवन हवन में अंजुरी भर भर अर्पित हैं। 

कार्यक्रम का संचालन अमर वीर चड्ढा ने किया तथा सरस्वती वंदना अंजना सक्सेना ने प्रस्तुत की। स्वागत डॉ पूर्णिमा भारद्वाज, दीपक शर्मा, वैजयंती दाते, डॉ. किसलय पंचोली ने किया। लिखित भारद्वाज ने आभार व्यक्त किया।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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