जिसमें बोलने का,विचारों का,मनन का अंत न हो वही वेदांत है--रघुनंदन शर्मा
भोपाल । अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भोपाल इकाई के तत्त्वावधान में श्री सुरेश पटवा द्वारा रचित पुस्तक "वेदों से वेदान्त तक" का लोकार्पण आज दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय, शिवाजी नगर, भोपाल संपन्न हुआ ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये मानस भवन के अध्यक्ष, विद्वान श्री रघुनंदन शर्मा ने कहा कि---
वेद शब्द की व्युत्पत्ति वद् धातु से हुई है।वद् याने बोलना , चिंतन व मनन के कारण मस्तिष्क से आज्ञा पाकर ही बोला जा सकता है।जिसमें बोलने का,विचारों का,मनन का अंत न हो वही वेदांत है।
मुख्य अतिथि: अखिल भारतीय साहित्य परिषद राष्ट्रीय मंत्री एवं निराला सृजनपीठ की निदेशक डॉ साधना बलवटे ने अपने वक्तव्य में कहा- भारतीय दर्शन में जो सोचने की, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उसे मानने न मानने की स्वतंत्रता है वह दुनिया के किसी भी दर्शन में नहीं है और इसीलिए भारतीय दर्शन किसी एक वाद, विचार, व्यक्ति या ग्रंथ से बंधा हुआ नहीं है। यही स्वतंत्रता भारत में अनेक दर्शनों की जनक रही है। यद्यपि सभी दर्शन वेदों की व्याख्या करते हुए ही अस्तित्व में आयें हैं। सुरेश पटवा जी ने सभी दर्शनों को सूत्र रूप में प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय कार्य किया है।
सारस्वत अतिथि: रामायण केंद्र के निदेशक डॉ राजेश श्रीवास्तव, ने कहा कि---
*'वेदों से वेदांत तक' पुस्तक में षड्दर्शन यथा (सांख्य, योग ,न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत) उपनिषदों का तत्व ज्ञान योग तथा वेदांत की समीचीन व्याख्या की गई है। चार्वाक दर्शन का विश्लेषण भी अद्भुत है।*
विशिष्ट अतिथि: अखिल भारतीय साहित्य परिषद भोपाल इकाई अध्यक्ष एवं निदेशक उर्दू अकादमी डॉ नुसरत मेहदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि-
*"श्री सुरेश पटवा जी की पुस्तक "वेदों से वेदान्त तक" न केवल सार्थक और उद्देश्यपूर्ण है, बल्कि वेदांत की गहनता को सरल रूप में प्रस्तुत कर इसे आधुनिक संदर्भों में भी प्रासंगिक बनाती है।"*
पुस्तक चर्चा के अंतर्गत विषय प्रवेश सनातन विषयक विद्वान डॉ प्रभात पाण्डे द्वारा किया गया उन्होनें कहा कि---प्राचीन भारत के वैदिक ज्ञान की महानता यह है कि इसमें मन शरीर और आत्मा की संपूर्ण भलाई शामिल हैं यह सार्वभौमिक और व्यापक है जो हमें सिखाता है और हमारे भीतर कल्याण की उस तरंग को जगाता है जो हमें जीवन की सभी संकट स्थितियों प्रतिकूल परिस्थितियों और कठिन समय में संतुलन और शक्ति के साथ निपटने में सक्षम बनाती है दर्शन शास्त्र सनातन भारतीय परंपरा की रीढ है और यही दर्शन शास्त्र आधुनिक विज्ञान का भी मूल है प्रस्तुत पुस्तक वेदों से वेदांत तक में भारतीय दर्शन उपनिषदों के तत्व ज्ञान योग तथा वेदांत की सरलतम व्याख्या प्रस्तुत करती है।
कृति के कृतिकार सुरेश पटवा ने पुस्तक की संरचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन की शुरुआत वेदों के सूक्तों से होती है। वेदों के मंथन से उपनिषदों में ब्रह्म का विचार पल्लवित हुआ। छै दर्शनों के माध्यम से सनातन सिद्धांत अस्तित्व में आए। तत्पश्चात् संस्कृत महाकाव्य और पौराणिक आख्यानों द्वारा संचालित भक्ति आन्दोलन से जन-जन में सनातन धर्म के मूल्य स्थापित हुए हैं। यह पुस्तक इसी प्रक्रिया को रेखांकित करती है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद भोपाल इकाई की महामंत्री सुनीता यादव ने
स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए परिषद के विभिन्न कार्यक्रमों की सूचना एवं आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की, सभी अतिथियों का हृदय से स्वागत किया।कार्यक्रम में सरस्वती वंदना सुधा दुबे व साथियों ने परिषद गीत खुशी विजयवर्गीय ने, संचालन साहित्यकार गोकुल सोनी ने व आभार दुष्यंत संग्रहालय से करुणा राजुरकर ने प्रस्तुत किया।
इस महत्वपूर्ण अवसर पर सभी साहित्य प्रेमी, विद्वानों और जिज्ञासु पाठक, विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष व साहित्यकार उपस्थित रहे ।
प्रेषक : अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भोपाल इकाई