काव्य :
फागुनी दोहे...
फगुआया मौसम हुआ, मदमाया हर अंग!
गदराया सा बदन है, पिय बिन सूना रंग!!
फागुन बैरी हो गया, तन मन हुआ मलंग!
छुट्टी लेकर आ पिया, मिलकर खेले रंग!!
पिया पड़े परदेश में, किससे खेलूं रंग!
फागुन में आ जा पिया, दहक रहे है अंग!!
सूखे सूखे से बदन, गदराया सा होय,
पूज रहे अब काम को, फागुन में सब कोय!!
- सुरेश गुप्त ग्वालियरी
विंध्य नगर बैढ़न
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