काव्य :
प्यारी ये होली है,
कजरारी चितवन संग...
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इंजी. अरुण कुमार जैन
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तरुओं पर नव कोंपल, मन में उल्लास है,
मलयागिरी पवन का, कण कण प्रवास है,
नव पल्लव खिल रहे, इंद्रधनुष नभ, थल पर,
ऋतु है सुहानी, न शीत, ग्रीष्म की लहर,
आम्र मंजरी पर कोयल की बोली है,
देखो आज चहूँ ओर, प्यारी ये होली है.
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कान्हा के संग राधा, रास श्रंगार है,
नयनों में प्रेम, मोह की
अमृत धार है,
अपलक निहारें वो, रोम- रोम पुलकित है,
प्रेमसागर प्रक्षालन, सृष्टि आनंदित है.
नयन, अधर स्पंदन मुखरित मौन बोली है,
देखो आज चहूँ ओर प्यारी ये होली है.
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पिचकारी मधुरंग से, सतरंगी सावन है,
ग़ुलाल, अबीर शोभित, हर घर व आँगन है.
भूल बैर,द्वेष सबजन, सखा, मित्र बन गये,
बच्चों संग बूढ़े भी, प्यारे मित्र बन गये.
लठियन की मार में भी,
मादक ठिठोली है,
कजरारी चितवन संग, ब्रज की वो छोरी है,
प्रेम, नेह अरु उमंग, फागन की गोली है.
देखो आज चहूँ ओर प्यारी ये होली है.
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संपर्क //अमृता हॉस्पिटल फ़रीदाबाद, हरियाणा.
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