प्रसंगवश - बढ़ती गर्मी पर विशेष :
उफ़ बढ़ता तापमान - कहां आराम?
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( डॉ घनश्याम बटवाल , मंदसौर )
ग्लोबल वार्मिंग खेत खलिहान , नदी नालों , भूमि - भवनों से हमारे आपके घरों पर भीषण गर्मी के साथ दस्तक देरहा है । इससे निपटने के प्रयास एकल , संस्थागत , कतिपय संगठन माध्यम से होरहे हैं पर निश्चित ही वे नाकाफ़ी हैं । स्तिथियों के अनुसार सामुहिक और बड़े स्तर पर निरंतर प्रयास करने होंगे तब अनुकूल स्थिति बनाई जा सकेगी ।
चिंतित हम तब होते हैं जब तक परिवार या स्वयं प्रभावित नहीं हों , कोरोना में भी चीन अमेरिका अफ्रीका के बाद मुंबई दिल्ली भोपाल जयपुर अहमदाबाद दस्तक दी तबतक गंभीरता कम बरती गई और महामारी प्रकोप बढ़ गया । यही स्थिति गर्मी या बढ़ते तापमान की होरही है । हमारे शरीर की क्षमता नहीं उससे अधिक तापमान बढ़ने लगा है परिणाम रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जारही है । मौसमी बदलाव में रोगप्रतिरोधक क्षमता घट रही और बीमार व बीमारियों की संख्या वृद्धि होरही ।
ताजा आंकड़ों के अनुसार मंदसौर जिला मुख्यालय को लेवें तो मात्र एक माह में जिला चिकित्सालय में 18 से 20 हजार रोगी पहुंचे जो सर्दी जुकाम बुखार एलर्जी वाइरल से ग्रसित थे । जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में संख्या इससे अधिक है । निजी हॉस्पिटल्स में भी अच्छी खासी भर्ती दर्ज हुई है ।जबकि अभी अधिकतम तापमान 37 - 38 डिग्री सेल्सियस ही हुआ है अनुमान है कि यह बढ़कर 45 - 47 डिग्री तक जायेगा । न्यूनतम तापमान भी 20 - 22 डिग्री होगया है यह भी बढ़ेगा । रतलाम , नीमच , उज्जैन में भी यही स्थिति है ।
यह मार्च महीना जिसे ठंड-गर्म के मिलेजुले सुहावने मौसम के रूप में याद किया जाता रहा है, बीत रहा लेकिन इस बार इस दौरान यदि कई राज्यों में हीटवेव की चेतावनी जारी हुई। यह हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।
यह दीवार पर लिखी इबारत की उस तरह है कि ग्लोबल वार्मिंग का गहरा असर हमारे जन-जीवन पर गहरे तक पड़ रहा है। मौसम के मिजाज में अभूतपूर्व बदलाव देखिए कि जहां हाल ही में कश्मीर, हिमाचल व उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में बर्फबारी व कुछ राज्यों में बारिश हुई है, वहीं मौसम विभाग ने देश के पांच राज्यों में गर्म हवाएं चलने का अलर्ट जारी किया है। एक ओर जहां झारखंड व ओडिशा में रेड अलर्ट जारी किया गया है तो पश्चिम बंगाल, ओडिशा और महाराष्ट्र में विदर्भ के इलाकों में गर्म हवा लू चलने की चेतावनी दी गई है।
बीते रविवार को ओडिशा के एक शहर का तापमान 43.6 डिग्री दर्ज किया गया। वहीं झारखंड में कुछ जगह पारा चालीस पार कर गया। पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में लू चलने की खबरें हैं। मौसम विज्ञानी हैरत में हैं कि जैसी गर्मी पिछले साल अप्रैल के महीने में महसूस की गई थी, वैसी गर्मी मार्च के मध्य में क्यों महसूस की जा रही है। मौसम विभाग इसकी वजह देश के ऊपर बना उच्च दबाव मानता है। वहीं साफ मौसम की वजह से सूरज की सीधी किरणें तेज पड़ रही हैं। चेतावनी दी जा रही है कि आगामी कुछ दिनों में देश के अधिकांश हिस्से तेज गर्मी की चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में हमारी सरकारों को ग्लोबल वार्मिंग के घातक प्रभावों के मद्देनजर बचाव के उपायों को तेज करने की जरूरत है। साथ ही नागरिकों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि लोगों का रहन-सहन, खान-पान और सार्वजनिक स्थलों पर व्यवहार कैसे रहें, ताकि लू की मार से बचा जा सके। गर्मी के दुष्प्रभाव पीड़ित लोगों के उपचार के लिये अस्पतालों में आपातकालीन वार्ड बनाए जाने की जरूरत है।
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मौसम के तेवरों में तल्खी के चलते हमारी खाद्य श्रृंखला भी खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। इन तीव्र बदलावों के चलते जहां खाद्यान्नों की पैदावार में गिरावट आ रही है, वहीं किसान बाढ़ व सूखे से भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं और नलजल योजनाओं पर काम होरहा है दावा भी किया जारहा है कि हर घर नल और हर खेत मे पानी आपूर्ति होगी ? पर ये योजनाएं दीर्घकालिक हैं और गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं वहीं महत्वपूर्ण यह है कि जलस्त्रोत ही रीते रहेंगे तो महत्वाकांक्षी योजनाओं का भविष्य क्या होगा ?
वर्षा जल ही सहेज नहीं पारहे हैं हम , समाज , और सरकार , तब फिर आगे चुनौती का सामना कैसे होगा ?
हमारे देश भारत में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों पर शोध करने वाली संस्था का रिपोर्ट में कहना है कि क्षेत्रीय आधार पर चरम मौसम की मार अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रभाव डाल रही है। अब तक देश के जो इलाके बाढ़ के प्रभाव के लिये जाने जाते थे, वहां अब सूखे का असर दिख रहा है। वहीं दूसरी ओर सूखाग्रस्त माने जाने वाले इलाकों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है। ऐसे जिलों की संख्या सैकड़ों में बतायी जा रही है, जिसका सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ रहा है। देश के सैंकड़ों जिलों में सतही जल और भूमि गत जल विदोहन ख़तरे की सीमा लांघ रहा है , फसलों पर ही नहीं पेयजलापूर्ति में भी संकट मंडराता जारहा है । यह तथ्य सर्वविदित है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर विश्वव्यापी है, लेकिन भारत जैसे लगभग 150 करोड़ विशाल आबादी वाले देश के लिए यह प्रभाव कालांतर में खाद्य संकट पैदा करने वाला साबित हो सकता है ? वहीं दूसरी ओर समुद्री जल का तापमान बढ़ने से जो जल स्तर बढ़ रहा है, उसके चलते देश के कई द्वीपों व समुद्रतटीय इलाकों में जीवन पर संकट मंडराने लगा है। यह संकट पहाड़ी राज्यों में असर डाल रहा है। जहां बर्फबारी कम होने से फल व खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। यहां तक कि उत्तराखंड में शीतकालीन खेलों की पहचान रखने वाले औली में कम बर्फ पड़ने के कारण इस बार भी शीतकालीन खेलों को स्थगित करना पड़ा है। वातावरण में बढ़ते तापमान के कारण यहां बर्फ समय से पहले ही पिघल गई। ग्लेशियर सिकुड़ते जारहे हैं जल उपलब्धता घट रही है मौसमी मिजाज बदल रहा है ।
बीते साल देश के विभिन्न राज्यों में लू चलने की संख्या पिछले डेढ़ दशक में सबसे ज्यादा थी। आशंका जतायी जा रही है कि इस बार गर्मी नये रिकॉर्ड बना सकती है, मौसम विभाग चेतावनी भी देरहा है , जिसके चलते आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाओं जिले व ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर गंभीर होने की जरूरत है। शासन - प्रशासन ही नहीं वहीं दूसरी ओर, हमें व समाज व नागरिकों को बढ़ते तापमान के साथ जीने की कला भी सीखनी ही होगी क्योंकि विकल्प सीमित होते जारहे हैं जिसके जिम्मेदार मानव स्वयं है ।
हमारे देश में हर मौसम जरूरी है और हर भौगोलिक क्षेत्रों की स्थिति मौसम के अनुसार चल रही है पर ऋतु चक्र बदलने से सर्दी गर्मी और वर्षा कम ज्यादा होने लगी है जो सबको प्रभावित कर रही है । अब गर्मी को ही लो , सबके चेहरे पर तनाव है कि अभी से बहुत गर्म लग रहा है आगे क्या ? इस दिशा में मुकाबले के लिए कितने तैयार हैं हम ? इसके बारे में नहीं सोचा जारहा , सोच के साथ काम होरहा है तो वह कम है । समुदाय को सरकारों को सबको जुटना - जुड़ना होगा तभी वास्तविक बसंत का आनंद मिलेगा ।
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