काव्य :
सरकार सुनो
सरकार सुनो ,सरकार सुनो
सोचो ,शान्त चित्त होकर
कितने मासूमों को खोया तुमने
कितने युद्ध लड़े तुमने और
कितने जन धन और,खोना है
क्या युद्ध ही मात्र विकल्प बचा
शत्रु कहां, व कौन कौन है
सोचो समझो व विचार करो
तब ही तुम कोई प्रहार करो
सरकार सुनो ,सरकार सुनो
भावना, बहुत हानि करती
बुद्धि, भ्रमित कर जाती है
युद्ध, समाधान कम ही देते
जन,धन,संसाधन क्षय होते
संतुष्टि, कहां मिल पाती है
दुर्बल,शत्रु को कर सकते
किन विधियों से, विचार करो
तब ही तुम कोई प्रहार करो
सरकार सुनो,सरकार सुनो
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल
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