काव्य :
सिंदूर की शक्ति
सिंदूर की शक्ति देख लो
मिट्टी में मिल जाओगे
अभी तो करवट ली है हमने
बचे नहीं रह पाओगे
आतंक मचाया बहुत ही तुमने
बच के कहां तुम जाओगे
जन्नत में ही घर है तुम्हारा
खुद को वहीं तुम पाओगे
हमारी संतानों के हत्यारे
तुम दाना पानी मांगोगे
भूख,नीद और चैन न देंगे
तुम गाली,गोली खाओगे
बारूदों के ढेर पर तुम हो
हम चिंगारी बन कर तैयार हैं
मात्र नमूना देखा है तुमने
*ब्रज*,खाक,राख बन जाओगे
है साहस तो निकल के देखो
सीमा पर ,तुम को रौंदेंगे
घर घर घुसकर हिन्दुस्तानी
कब्र तुम्हारी खोदेंगे
बहुत हो गया, बाज आओ तुम
अपनी घिनौनी हरकत से
चैन,अमन तुम सीखो हमसे
वरना, कहीं न खुद को पाओगे
पाक बनो तुम, साफ बनो तुम
वरना ,साफ तुम्हे हम कर देंगे
हत्यारे भारत के लालों के
कभी,उबर नहीं तुम पाओगे
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र ,भोपाल
Tags:
काव्य