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समीक्षा :
ममता का आंचल (कहानी संग्रह) में हैं सामाजिक चेतना और विमर्श की कहानियां
लेखिका – श्यामलता गुप्ता
महाराष्ट्र राज्य हिंदी सिहित्य अकादमी (2024-25): मुंशी प्रेमचंद (कहानी) स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
प्रस्तुत कहानी संग्रह का शीर्षक ‘ममता का आंचल’ स्त्री हृदय के ममत्व से जुड़ा हुआ है। कुल अठारह कहानियों का रसपूर्ण - सौम्य शब्दावली, संदेशप्रद उक्तियों से सजा मधुर कहानीसंग्रह है। कहानियों का अंतरंग भारतीय जीवन के अतीत और वर्तमान पर केंद्रित है। लेखिका समाज जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी नारी जीवन को चिंतनशीलसे परंतु सौम्यता से चित्रित करती है। शीर्षक कहानी ‘ममता का आंचल’ का आरंभ ही स्त्री की गरिमा को स्पष्ट करता है। ‘भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक शास्त्रों ने नारी को प्रकृति की संज्ञा दी है क्योंकि प्रकृति जननी के साथ – साथ अमूल्य धरोहर है उसी के अनुरूप स्त्री भी समाज के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है”(पृ.13)
फिर भी यह लिखकर लेखिका इस बात पर संतुष्ट नहीं है कि इस बात को समाज ने पूर्ण रूप से स्वीकार किया है और स्त्री को हर तरफ़ से सम्मानित किया जा रहा है। इन कहानियों में स्त्री को आज भी समाज में किन किन छोटे-बडे मुद्दों से परखा जाता है, उन बातों को अनेकों प्रसंगों में दिखाई देता है। उसका गृहस्थ जीवन जहाँ उसके लिए नियम बने हैं। छोटे - बड़े जिसमें प्रथमतः दी जाती है वह सबको खुश करें। शादी के समय स्त्री की सुंदरता जिसमें रंग-रूप देखा जाता है। शादी के बाद अपेक्षाकृत माना जाता है, स्त्री अपने आप पर संयम रखे। वह उसकी खुशियों को घर की खुशियों में ढाल दे।यह सिलसिला काफी कहानियों में दिखाई देता है। यह हमारे अतीत का इतिहास ही है।घर - गृहस्थी स्त्री के त्याग पर टिकती थी। कहानियों में ऐसे मुद्दों पर चलनेवाली स्त्रियों के समर्पण का सुखद चित्रण मिलता है।
लेकिन बदलते समय के साथ भारतीय स्त्री भी बदल रही है, इस सच्चाई को भी इन कहानियों में स्थान मिला है। क्योंकि अब स्त्री के जीवन में उसकी शिक्षा उसके लिए, उसके घर के लिए एक नई रोशनी लेकर आई है।
इन कहानियों में ‘सोमा – एक लड़की’ बेहद मार्मिक कहानी है।अभी भी दूर दराज के पशुपालन जैसे क्षेत्रों से जुड़े वर्गों में तब्दीली आना जरूरी है। इस विषय पर केंद्रित इस कहानी को पढ़कर शिक्षा का अधिकार है फिर भी उस अधिकार को नष्ट करता बाप देखकर हैरानी होती है। सोमा पढ़ना चाहती है, लेकिन बाप उसको विरोध कर बकरियाँ चराने भेजता है।भाई स्कूल जाता है क्योंकि उसकी पढ़ाई जरूरी थी। सोमा लड़की थी इसलिए उसकी अवहेलना होती है। वह शिक्षा के अधिकार से वंचित बहुत दुखी थी। वही जंगल में बैठी रहती है । शाम होने पर बकरियों को वापसी का रास्ता दिखाकर खुद घर वापस नहीं जाती है।वह घर वापस ना आनेपर सब रातभर उसको खोजते हैं। उसको अकेली देखकर जंगल में कुछ बदमाशों ने उनके साथ बदसलूकी की और उसको जला दिया था। यह देखकर घर के सब व्यथित हो जाते हैं। एक मासूम बच्ची वहशी लोगों का शिकार हो गई, उसको अपनी जान गंवानी पड़ी। यह कहानी आज भी हमें स्त्री शिक्षा पर रोक लगानेवाले हिंस्त्र मानसिकता का वास्तव दिखाती है। लेखिका उच्च वर्गीय परिवार की शालीनता दिखाते हुए जनजातीय समुदाय की दुखद घटनाओं का भी कहानियों के रूप में चित्रण करती है यह इस कहानी संग्रह की विशेषता है।
‘लिव इन रिलेशन’ कहानी में एक मजदूर स्त्री की ऐसे संबंधों से हुई दुर्दशा का वर्णन मिलता है। यह संबंध खोखले होते गृहस्थ जीवन के रिश्तों की वास्तविक स्थिति है। इन संबंधों का घर में रहनेवाले बच्चों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। सोशल मीडिया का बुरा प्रभाव और बदलती जीवन शैली का विचार करती ‘मोबाईल का चक्रव्यूह’ कहानी किशोरियों को जालसाजों द्वारा फंसाने की कहानी है। इस कहानी मे मां का बच्चों को बचाने का संघर्ष संदेशप्रद है।आजकल बच्चों से लेकर हर किसी का इस मायावी जगत के प्रति आकर्षण स्वाभाविक रूप से हर घर में दिखाई देता है।लेकिन परिजनों को उन्हें ऐसे समय पर अकेले छोड़ना नहीं चाहिए। गलती सुधारी जाती है, यह अंत महत्वपूर्ण है।
‘डाँलर का डंक’ कहानी मध्य वर्ग के लालच और सामाजिक बदलाव का चित्रण है। अमेरिका में ब्याही पारूल को अपने शादी की सच्चाई और धोखा पता चलता है तो वह संघर्ष कर पिता के मार्गदर्शन से भारत लौटती है। आगे चलकर इस शादी को सामाजिक प्रतिष्ठा न मानकर वह अपना अलग होने का निर्णय लेती है। पीयूष उसका पति फिर से माफी मांगने आता है।लेकिन पारूल उसके हाथों में विवाह विच्छेद का नोटिस (डिवोर्स पेपर) थमाती है। यह दृढ़ता आत्मसम्मान को बढाती है।
कहानी संग्रह में भारतीय स्त्री जीवन का समयानुसार बदलाव दिखाते हुए सौम्यता उसकी दृढ़ता और निश्चय को भी दर्शाया गया है। स्त्री को यदि सक्षम होना है तो उसके उपर मंडराते ख़तरों का अहसास भी समाज को समझना चाहिए। पति उसका साथी है लेकिन जाहिलियत पर उतरने वाले को इंसान समझना जरूरी नहीं होता है। कहानी की नायिका का यह निर्णय संदेशप्रद है।
इस कहानी संग्रह का उद्देश्य ही स्त्री का बदलता आकाश और चुनौतियाँ है। परंपरागत घर- आंगन से वैज्ञानिक, वकील, डॉक्टर, शिक्षिका और काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही स्त्रियों का जीवन आज कितना बदल गया है। जो इस बात को समझ सकते हैं वह स्त्रियों का साथ अवश्य देते हैं और देना भी चाहिए। कहानी संग्रह मुख्यतः सामाजिक उपदेश और संदेशप्रद बोध जैसे तत्वों से जुड़ा है। वैसे आजकल उपदेश और बोध सुनना किसीको अच्छा भी नहीं लगता है। लेकिन कभी तो इस बात पर गंभीरता से विचार करना पड़ेगा कि बदलाव के लिए हम सब को एक दूसरे का साथ अवश्य देना चाहिए। भारतीय परंपरा और सामाजिक बदलाव पर चिंतन करती कहानियों को लिखने के लिए लेखिका श्रीमती श्यामलता गुप्ता जी को शुभकामनाएं!
द्वारा – लतिका जाधव*, पुणे, महाराष्ट्र
ममता का आंचल (कहानीसंग्रह)
ले. श्यामलता गुप्ता
प्रकाशक – निष्ठा साहित्य सदन, दिल्ली- 32
द्वितीय संस्करण- 2025, मूल्य – 350/-
पृष्ठ संख्या -104
संपादक, श्री. देवेंद्र भाई सोनी जी,
ReplyDeleteमेरा आलेख प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!