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काव्य : मां भारती का सिंदूर श्रृंगार - राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी'


 काव्य : 

मां भारती का सिंदूर श्रृंगार

 

क्रंदन दुख की घटाओं

 से घिरा था गगन

ह्रदय में थी असहृय पीड़ा 

क्लेद युक्त दुखी मन


सुरमई आकाश में घटाएं 

घिर रहीं थी घन घन

गगन कुछ लोहित हो चला

कर रहा था सृजन 


मध्य रात्रि में चमका धूमकेतु 

उल्का का उन्नयन 

भारत राष्ट्र उठ खड़ा हुआ था

घोर गर्जन घोर गर्जन


सिंधु -शोर था प्रचण्ड सिंदूर 

नापाकी मरे हर क्षण

मां बहनों ने पोछा था सिंदूर

उनने मांग भरी तन मन


भारत माता ने लहु मांग भरी

जब गिरे राक्षसों के नरमुंड

विश्व देखले अपना ही  दर्पण 

भारत राष्ट्र की शक्ति  अखंड


 - राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी'

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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