काव्य :
अर्चना का गीत हूँ
मैं प्रणय के देवता की अर्चना का गीत हूँ
मैं बँधा हूँ काल में संसार सा
मैं गुँथा हूँ शब्द में, इक हार सा
उपवनों से सुमन की गंध लेकर
अंजली में प्रीत के उपहार सा
मैं प्रणय के देवता की अर्चना का गीत हूँ
पन्थ में आरोह भी अवरोह भी
प्रेम के आलाप भी स्नेह भी
नृत्य करते इन पदों में घूँघरू
थाप में थिरकन भरे अवलेह भी
मैं प्रणय के देवता की अर्चना का गीत हूँ
अंग में प्रत्यंग में मेरे समर्पण
भावना में बद्ध मेरा सज्ज-अर्पण
मन विरंजित साधना के अर्क से
सर्व निज मद-मान का हो विसर्जन
मैं प्रणय के देवता की अर्चना का गीत हूँ
- रामनारायण सोनी,इंदौर
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