बूढ़ा बरगद कर रहा
शाखाओं से बात,
दूर रहो चाहे जहां
जुड़े हैं मन के तार।
तुम्हें मिले सूरज नया
शक्ति मिले भरपूर,
संबल इस तन का बनो
भूल न जाना मूल।
कोमल पुष्प लता नहीं
घनी छाँव तुम नीड़,
तुमसे है शीतल हवा
मन की हर ले पीर।
ध्यान किन्तु रखना कहीं
धरा न हो तृणहीन,
विकसित पादप हों सभी
जगह न उनकी छीन।
-डॉ. सुधा कुमारी
नई दिल्ली
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काव्य